सनातन धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसका दाह-संस्कार किया जाता है। दाह-संस्कार करने के बाद मृत व्यक्ति की अस्थियों को गंगा नदी में विसर्जित किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है और उसके सभी पापों का नाश हो जाता है। हालांकि कई लोगों ऐसे भी हैं, जिनके मन में यह सवाल उठता है कि मनुष्य की अस्थियां गंगा नदी में ही क्यों विसर्जित की जाती है?
दरअसल सनातन धर्म में गंगा नदी को देव नदी कहा गया है। मान्यता है कि गंगा नदी स्वर्ग से उतरकर इस धरती पर आई है। धरती पर आने से पहले गंगा नदी, भगवान श्रीविष्णु के चरणों से निकली और भगवान शिव की जटाओं में आकर बस गई। भगवान श्रीविष्णु और भगवान शिव से संबंध होने के कारण गंगा नदी को बहुत ही पवित्र नदी माना गया है। इसलिए गंगा नदी में स्नान करने से ही मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं। साथ ही मृत व्यक्ति की अस्थियां गंगा नदी में विसर्जित करने से वह सीधे भगवान श्रीविष्णु के चरणों में पहुँच जाती है। इसलिए सनातन धर्म में अस्थियों को गंगा नदी में विसर्जित करने की प्रथा है।
शास्त्रों में एक प्रसंग है कि एक बार मां गंगा भगवान श्रीविष्णु से मिलने के लिए बैकुण्ठ धाम गई। उन्होंने भगवान श्रीविष्णु से प्रश्न किया कि हे प्रभु! यदि मेरे जल में स्नान करने से सभी लोगों के पाप धुल जाएंगे तो मैं इतने पापों का बोझ कैसे उठाऊंगी। इस पर भगवान श्रीविष्णु ने मां गंगा से कहा कि जब साधू, संत और वैष्णव आकर आपके जल में स्नान करेंगे तो आपके सारे पाप धुल जाएंगे।
अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बात करें तो इसको लेकर अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं मिल पाया है कि गंगा नदी में विसर्जित की गई अस्थियां कुछ समय बाद गायब क्यों हो जाती है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों ने यह संभावना जरूर जताई है कि गंगा नदी के पानी में पारा होता है जो हड्डियों में मौजूद कैल्शियम और फॉस्फोरस को पानी में घोल देता है और यह बाद में जल-जंतुओं के लिए एक आहार बन जाता है। कैल्शियम पानी को स्वच्छ रखने का काम भी करता है। यही कारण है कि कई लोग गंगा नदी का जल बोतल अपने घर ले जाते हैं और वह जल सालों तक ख़राब नहीं होता है। इसके अलावा हड्डियों में मौजूद गंधक और पारा मिलकर पारद का निर्माण करता है। पारद, भगवान शिव और गंधक, शक्ति का प्रतीक माना जाता है।