वैसे तो समस्त भारतवर्ष देवों की धरती है. यहाँ कदम कदम पर देवी देवताओं का निवास है. लेकिन फिर भी कुछ ऐसे शहर हैं, जहाँ स्वयं ईश्वर निवास करते हैं. अयोध्या, मथुरा, काशी, द्वारका, तिरुपति ऐसे ही स्थान माने जाते हैं. मध्यप्रदेश के एक शहर को स्वयं भोलेनाथ की नगरी कहा जाता है. कहते हैं, यहाँ के राजा भी स्वयं महाकाल हैं. और इस शहर का नाम है उज्जैन. यही एक मात्र स्थान है जहाँ शक्तिपीठ भी है, ज्योतिर्लिंग भी है, और कुम्भ महापर्व का भी आयोजन किया जाता है.
यहाँ साढ़े तीन काल विराजमान हैं, महाकाल, कालभैरव, गढ़कालिका और अर्धकाल भैरव.
यहाँ तीन गणेश विराजमान हैं, चिंतामन, मंछामन, इच्छामन. इसके अलावा उज्जैन में 84 महादेव है, यहीं सात सागर है.
ये भगवान कृष्ण की शिक्षा स्थली है. ये मंगल ग्रह की उत्पत्ति का स्थान है. यही वो स्थान है, जहाँ महाकवि कालिदास का जन्म हुआ था. उज्जैन विश्व का एक मात्र स्थान है जहाँ अष्ट चिरंजीवियों का मंदिर है. और इस मंदिर का नामा है, बाबा गुमानदेव हनुमान अष्ट चिरंजीवी मंदिर. ये वही आठ चिरंजीवी हैं, जिन्हें अमरता का वरदान है.
उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य ने इस पुन्य धरती का मान और यश कीर्ति पूरे विश्व में फैलाया था. उज्जैन में ही विश्व की एक मात्र उत्तर प्रवाह मान क्षिप्रा नदी स्थित है. उज्जैन के इसके शमशान को भी तीर्थ का स्थान प्राप्त है, जिसका नाम है चक्र तीर्थ. यहां नौ नारायण भी निवास करते हैं.
भारत को सोने की चिड़िया का दर्जा यहां के राजा विक्रमादित्य ने ही दिया था. इनके राज्य में सोने के सिक्के चलते थे. सम्राट राजा विक्रमादित्य के नाम से ही विक्रम संवत का आरंभ हुआ, जो हर साल चैत्र माह के प्रतिप्रदा के दिन मनाया जाता है. उज्जैन से ही ग्रह नक्षत्र की गणना होती है, और कर्क रेखा उज्जैन से होकर गुजरती है. और तो और महाकाल के मंदिर को पूरी दुनिया का केंद्र बिंदु (Central Point) माना जाता है. महाभारत की एक कथा के अनुसार उज्जैन साक्षात स्वर्ग है.