भगवान श्रीराम अपने वनवास के दौरान नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम पहुंचे। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मणजी व माता सीता सहित भगवान श्रीराम ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया। यहीं पर लक्ष्मणजी ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। श्रीराम-लक्ष्मणजी ने खर और दूषण के साथ युद्ध भी यहीं किया था। यहां पर मारीच का स्मारक भी अस्तित्व में है। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मित्रता भी यहीं हुई थी।
उस समय में पंचवटी भी दंडक वन के अंतर्गत आता था। पंचवटी या नासिक से गोदावरी नदी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 20मील यानी 32 किमी दूर है। आज पंचवटी महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित बड़ा तीर्थस्थान है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहां बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान त्र्यंबकेश्वर का भी मंदिर है। रामायण और प्राचीन ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि वन गमन के समय भगवान श्रीराम ने भगवान त्र्यंबकेश्वर के दर्शन किए थे।
पंचवटी में ही अगस्त्य मुनि ने भगवान श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए थे। नासिक में श्रीराम पंचवटी में रहे और गोदावरी के तट पर स्नान-ध्यान किया। नासिक में गोदावरी के तट पर पांच वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है। ये पांच वृक्ष थे- पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट। यहीं पर सीता माता की गुफा के पास पांच प्राचीन वृक्ष हैं, जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इन वृक्षों को भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मणजी ने अपने हाथों से लगाया था। नासिक क्षेत्र भगवान श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मणजी की यादों और निशानियों से भरा पड़ा है। सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यंबकेश्वर मंदिर आदि आस्था के बड़े केंद्र हैं। यहां भगवान श्रीराम द्वारा बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में आज भी मौजूद हैं।
श्रीराम और लक्ष्मणजी ने यहां मारीच का अंत किया था, वह पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर के नाम से पहचाना जाता था। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है। इस तरह त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास बसी पंचवटी रामायण से जुड़ी एक बहुत ही खास जगह है। इसी वजह से यह स्थान धार्मिक नजरिये से बहुत महत्वपूर्ण है।