दिव्य धनुष से किया था भगवान श्रीराम ने, रावण का अंत

हमारे धर्म ग्रंथों में अधिकतर कथाओं के माध्यम से मार्गदर्शन दिया गया है। कुछ बातें सीधी- सीधी कथाओं के माध्यम से है तो कहीं कथाओं या पात्रों के बीच गूढ़ रहस्य भी बताए गए हैं। रामायण के अनुसार रावण के नाभि कुंड में अमृत है, इस रहस्य को विभीषण ने भगवान श्री राम के समक्ष उजागर किया था,  यह तो हम सब जानते हैं, लेकिन एक और भेद था जिसके प्रकट हुए बिना भगवान श्री राम के द्वारा रावण का अंत करना आसान नहीं था। यह एक ऐसा दिव्यास्त्र था जो मंदोदरी के कक्ष में छुपा कर रखा गया था, जिसे अपनी सूझबूझ से हनुमानजी ने मंदोदरी से प्राप्त किया था।

  जब भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई की तो रावण ने एक के बाद एक अपने कुटुंब के योद्धाओं को भेजा। सभी रणभूमि में पराजित हो गए, तब श्री राम और रावण के बीच अश्विन शुक्ल पक्ष की तृतीया से युद्ध आरंभ हुआ, जो दसवीं तक चला। कुल 32 दिनों तक चले इस युद्ध में दोनों ओर से लगातार अस्त्र पर अस्त्र चलाए जा रहे थे, लेकिन रावण था कि वह हार मानने को तैयार नहीं था। रावण भगवान शिव से वरदान प्राप्त होने के साथ ही साथ युद्ध कौशल और मायावी शक्ति का धनी था। उसे मारना यदि असंभव नहीं तो आसान भी नहीं था। युद्ध लगातार लंबा खिंचता जा रहा था। इसी को लेकर चिंता बढ़ती जा रही थी। विभीषण ने श्री राम को बताया कि रावण की नाभि कुंड में अमृत है और इस नाभि कुंड पर एक विशेष दिव्यास्त्र से ही प्रहार करना होगा, तभी रावण का अंत किया जा सकता है। वैसे तो श्री राम के पास एक से एक अस्त्र और दिव्यास्त्र थे। धनुष और उनके तरकश के तीर भी विशेष और दिव्य थे, लेकिन शिव के वरदान के बाद रावण की शक्ति  बढ़ गई थी।

वैसे ग्रंथों में भगवान श्री राम के पास दो प्रकार के धनुष का जिक्र आया है। एक वह जिसे भगवान राम हमेशा धारण किए रहते थे। बांस के बने हुए इस धनुष को कोदंड कहा जाता था। इसे सिर्फ भगवान श्री राम ही धारण कर सकते थे। इस अलौकिक धनुष की विशेषता थी कि एक बार अगर इस पर कोई बाण चढ़ा दिया तो फिर वह लक्ष्य भेदकर  ही लौटता था। जब तक बहुत आवश्यक न हो रामजी इस धनुष पर बाण नहीं चढ़ाते थे। पूरे युद्ध में इसी कोदंड धनुष से भगवान राम ने कितने ही राक्षसों का अंत किया, लेकिन रावण का अंत रामजी ने अपने धनुष से नहीं किया । विभीषण ने रामजी को बताया कि प्रभु इस तरह तो युद्ध में कोई भी पराजित नहीं होगा। रावण का अंत करने के लिए उस दिव्य अस्त्र की आवश्यकता है, जो ब्रह्माजी ने रावण को वरदान के रूप में प्रदान किया था। रावण ने इस दिव्य धनुष को मंदोदरी के कक्ष में छुपाया हुआ है। मुश्किल यह थी कि इस दिव्य धनुष को प्राप्त कैसे किया जाए ? इसके लिए सबसे उपयुक्त हनुमानजी ही नजर आए, क्योंकि वह बुद्धि- बल से परिपूर्ण थे। हनुमानजी पहले भी लंका हो आए थे।  हनुमानजी ब्राह्मण का वेश धारण कर मंदोदरी के महल में पहुंचे और अपनी बुद्धि के बल पर मंदोदरी से वह दिव्य धनुष प्राप्त किया।

हनुमानजी आकाश मार्ग से लौटे और भगवान श्री राम को यह दिव्य धनुष सौंप दिया। इसी  दिव्यास्त्र के जरिए  भगवान श्री राम ने रावण के नाभि कुंड पर प्रहार किया, जिससे रावण का अंत हो सका। इस तरह रावण का अंत अपने ही अस्त्र से हो गया ।