अच्छा ज्ञान जहां से मिले वहां से ले लेना चाहिए. क्योंकि ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता. हां यह हो सकता है कि जिस ज्ञान को आज ले रहे हों उसका तुरंत इस्तेमाल न हो पर भविष्य में ज़रूरत पड़ने पर उस सीखे गए ज्ञान को इस्तेमाल कर उस समय हो रही परेशानी को दूर कर सकते हैं. आज के आर्टिकल में हम बता रहे हैं मारीच के बारे में, जो रावण का एक सेनापति था. मारीच एक ऐसे संकट में पड़ा जिसमें उसका अंत निश्चित था ऐसे में उसने भगवान राम के हाथों मरना पसंद किया. आखिर क्यों मारीच ने ऐसा किया और इससे क्या हम सीख सकते हैं. इसी पर आज का हमारा आर्टिकल है.
जिस सेनापति के बारे में हम बात करे रहे हैं वो रिश्ते में रावण का मामा था. मारीच बहुत बड़ा मायावी था. वह रूप बदलकर कपट किया करता था. उसे छल करने में महारत हासिल थी.
एकबार रावण मारीच के पास पहुंचा और प्रणाम किया. उसके प्रणाम करने से वह समझ गया कि रावण अगर झुककर प्रणाम कर रहा है तो यह बहुत बड़ी बात है जिससे विकट परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है. मारीच का मानना था कि बिना किसी स्वार्थ के कोई झुकता नहीं है. रावण ने अपने आने का कारण बताया कि वो पंचवटी से सीता का हरण करना चाहता है. इस घटना को तभी अंजाम दिया जा सकता था जब भगवान राम वहां से कुछ देर के लिए हट जाएं.
रावण ने मारीच से कहा कि तुम स्वर्ण मृग बनकर पंचवटी जाओ जिससे सीता तुम्हार मनोहर रूप देखकर राम से कहेंगी कि तुम्हें पकड़ कर लाएं. जब राम तुम्हारा पीछा करते हुए जाएंगे तब मैं सीता का हरण कर लूंगा.
इस पर मारीच ने रावण को सचेत किया कि रामजी से दुश्मनी करना सही नहीं है. मारीच ने उस घटना का भी जिक्र किया जिसमें उसे भगवान राम का तिनका लगा था जिससे वह समुद्र को इस पार आकर गिरा था. मारीच ने रावण को यह भी बताया कि राम दैवीय पुरुष हैं, ये भगवान विष्णु के अवतार हैं.
मारीच की सभी बातों के दरकिनार करते हुए रावण ने कहा कि यदि मेरी बात नहीं मानोगे तो मैं तुम्हारा वध कर दूंगा. रावण की बात सुनकर मारीच सोच में पड़ गया कि मरना तो तय है पर भगवान राम के हाथों से मरने पर मोक्ष प्राप्त होगा.
सबकुछ सोच समझकर मारीच ने रावण की इच्छा पूरी की और वो भगवान राम के हाथों मारा गया.