बड़े बड़े बलशाली बाली के सामने हो जाते थे शक्तिहीन

हिन्दू संस्कृति और सभ्यता में रामायण ने सदियों से मानवजाति का मार्गदर्शन किया है. इंसान को रामायण से सीधी सीधी यही सीख मिलती है कि, मनुष्य का जीवन संघर्ष से ही महान बनता है. और कितनी भी बड़ी मुसीबत हो अगर इंसान हौसला रखे तो सब ठीक हो जाता है. और बुरा करने वाले का अंत होना भी तय होता है. जैसे रामायण में बाली का अंत हुआ.

रामायण का हर पात्र की कोई ना कोई विशेषता ज़रूर थी, महाबली बाली के बारे में सब जानते हैं, श्रीराम के परमसखा सुग्रीव का भाई, और किष्किन्धा नगरी का राजा था बाली. हालांकि बाली के अंत के पश्चात सुग्रीव किष्किन्धापति बन गए थे, पर इसके लिए श्रीराम ने उनका बहुत सहयोग किया. उन्होंने बाली का अंत करके सुग्रीव की पत्नी को उससे मुक्त कराया. किन्तु बाली को अंत इतना आसान नहीं था.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भी कहा जाता है कि, समुद्र मंथन के समय बाली ने देवताओ की सहायता की थी. और एक बार तो अकेले ही पूरा समुद्र मंथन कर दिया था. बाली बहुत शक्तिशाली था, और कहते हैं कि, वो एक ही दिन में पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा लेता था. और ब्रह्माजी से उसे ये वरदान मिला था कि, जो भी उससे से युद्ध करेगा, उसकी आधी शक्ति बाली के पास चली जायेगी, और फिर युद्ध करने वाला एक तरह से उसके सामने शक्तिहीन हो जाएगा. इसी वरदान की वजह से लंकापति रावण को उसने कई बार बुरी तरह परास्त किया. ये भी कहा जाता है कि, बाली ने लम्बे समय तक रावण को अपनी कांख में दबाकर भी रखा था.

बाली ने मय दानव के पुत्र दुदुम्भी का भी अंत कर दिया, और उसे चार कोस दूर फेंक दिया था. दुदुम्भी में एक हज़ार हाथियों का बल था, उस समय संसार में ऐसा कोई भी नहीं था, जो बाली से सामने से युद्ध कर सकता हो. यहां तक कि, उसकी शक्ति के चलते सुग्रीव ने भी अपने मित्र श्रीराम को उसके सामने जाने से मना किया था. किन्तु रामजी, सुग्रीव को वचन दे चुके थे कि, वो बाली का अंत ज़रूर करेंगे, उसके बाद योजना के अनुसार सुग्रीव ने जाकर बाली को युद्ध के लिए ललकारा, और जब दोनों युद्ध करने लगे, तो श्रीराम ने एक पेड़ के पीछे से उस पर बाण चलाया, और बाली का हमेशा के लिए अंत हो गया.