रावण का घमंड चूर करने वाली भगवान श्रीराम की सेना के प्रमुख योद्धाओं में जामवंत का विशेष उल्लेख है। वे अत्यंत बुद्धिमान और धैर्यवान थे। त्रेता ही नहीं द्वापर युग की पौराणिक कथाओं में भी उनके अनेक प्रसंग मिलते हैं। द्वापर युग में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से स्यमंतक मणि के लिए युद्ध किया था और पराजित होने पर उन्हें मणि सौंप दी थी और उनसे अपनी कन्या का विवाह कर दिया था।
इधर, सीता माता की खोज के दौरान भगवान राम ऋष्यमुक पर्वत (वर्तमान का कर्नाटक प्रदेश) पर विराजमान थे, तब सुग्रीव ने अपनी वानर सेना को माता सीता की खोज में चारों दिशाओं में भेजा था। पता चला कि माता सीता लंका में हैं और वहां पहुंचना लगभग असंभव है, तो हनुमानजी के नेतृत्व वाला खोजी दल निराश हो गया। उस दल में जामवंत भी थे। सभी को निराश देख कर जामवंत आगे आए और उन्होंने हनुमानजी के बाल्यकाल का एक प्रसंग सुनाकर उन्हें अपनी विस्मृत शक्ति याद दिलाई थी।
उस पौराणिक कथा के अनुसार हनुमान बचपन में बहुत चंचल थे और ऋषियों को अनेक तरह से परेशान करते थे। इससे विचलित होकर एक ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया था कि वे अपनी शक्तियां भूल जाएंगे और जब किसी बडे़ कल्याणकारी कार्य के लिए उन्हें उन शक्तियों का स्मरण कराया जाएगा, तब वे शक्तियां उन्हें पुन: प्राप्त हो जाएंगी। ये शक्तियां देवताओं ने उन्हें उस समय प्रदान की थीं जब हनुमान ने सूर्य को निगल लिया था। सूर्य को मुक्त कराने के लिए इंद्र ने हनुमान पर वज्र प्रहार कर उन्हें बेहोश कर दिया था। तब पवन देव ने गुस्से में आकर सृष्टि की प्राणवायु छीन ली थी। पवन देव के गुस्सा होने पर सभी देवताओं ने हनुमान पर स्नेह वर्षा कर उन्हें अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान की थीं।
यह कथा सुनाकर जामवंत ने हनुमान को स्मरण कराया कि वे उड़ने में भी सक्षम हैं और वायु मार्ग से लंका जाकर माता सीता का पता लगा सकते हैं। इतना सुनते ही हनुमान को अपनी शक्तियां याद आ गईं और वे लंका जाकर माता सीता की खोज कर आए।
तीनों युगों में मिलता है जामवंत का उल्लेख
जामवंतजी बहुत विद्वान थे। वेद-उपनिषद् उन्हें कण्ठस्थ थे। परशुरामजी और हनुमानजी के बाद जामवंत का तीनों युग में होने का वर्णन मिलता है। कहा जाता है वे आज भी जिंदा हैं। परशुरामजी और हनुमानजी से भी लंबी उम्र है उनकी। उनका जन्म सतयुग में राजा बलि के काल में हुआ था। जामवंत को ऋक्षपति कहा जाता है। ऋक्ष शब्द संस्कृत के अंतरिक्ष शब्द से निकला है। इस ऋक्ष शब्द का स्वरूप बोलचाल में थोड़ा बेढंग होकर रीछ हो गया। क्या जामवंत भालू-मानव थे? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए एक यूनानी कथा का सहारा लिया जा सकता है। उसके अनुसार सप्तर्षि तारामंडल को यूनान में बड़ा भालू (लार्जर बीयर) कहा जाता है। पुराणों के अनुसार जामवंत के पिता अग्नि व माता गंधर्व कन्या थीं। जब पिता अग्नि व माता गंधर्व कन्या थीं तो जामवंत भालू कैसे हो सकते हैं? पुराणों में वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है। वानर और पुरुष के बीच की यह जनजाति अधिक विकसित थी।
त्रेतायुग की इच्छा द्वापर में पूरी हुई-
राम- रावण युद्ध के बाद जामवंत ने श्रीराम से कहा युद्ध में उन्हें अपनी वीरता दिखाने का अवसर नहीं मिला। यह सुन राम मुस्करा दिए। वे समझ गए कि जामवंत को अहंकार हो गया है। उन्होंने जामवंत से कहा उनकी युद्ध की इच्छा तब पूर्ण होगी जब मैं अगला अवतार लूंगा। तब तक इसी स्थान पर तपस्या करें। द्वापर युग में श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि चोरी का आरोप लगा। यह मणि जामवंत के पास थी। तब उस मणि को हासिल करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण को जामवंत से युद्ध करना पड़ा। युद्ध में जामवंत पराजित हुए। इससे उनकी त्रेता युग की युद्ध की इच्छा पूरी हुई और अहंकार भी चला गया। यह युद्ध आज के गुजरात में राजकोट-पोरबंदर मार्ग पर स्थित एक गुफा में हुआ था। इसे जामवंत गुफा कहा जाता है।
हनुमानजी के मामा थे जामवंत-
जामवंत ने जामथुन नाम की एक नगरी बसाई थी जो आज के मध्यप्रदेश के रतलाम शहर के उत्तर-पूर्व में थी। यहां एक गुफा मिली है, जिसे जामवंत गुफा कहा जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार उत्तरप्रदेश में बरेली के पास जामगढ़ स्थित गुफा को भी जामवंत की गुफा माना जाता है। जम्मू के पास पीरखोह जामवंत की तपस्या स्थली मानी जाती है। उनकी पत्नी का नाम जयवंती था। उन्होंने अपनी पुत्री जामवंती का विवाह भगवान श्रीकृष्ण से किया था। माता अंजनी ने जामवंतजी को अपना बड़ा भाई माना था, इस रिश्ते से वे हनुमानजी के मामा हैं।