जातक कथा – स्वयं को दान करने के लिए अंगीठी में कूद गया खरगोश

बौद्ध धर्म के गुरु अपने अनुयायियों को धर्म और नीति का उपदेश देने के लिए भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म की कहानियां सुनाते हैं। इन कहानियों को जातक या जातक पालि या जातक कथाएं कहा जाता है। विश्व की प्राचीनतम लिखित कहानियों में से एक जातक कथाएं बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का सुत्तपिटक अंतर्गत खुद्दकनिकाय का 10वां भाग है। मान्यता हैं कि जातक कथाएं स्वयं भगवान बुद्ध के द्वारा कही गई हैं। हालांकि कुछ विद्वानों का मानना हैं कि कुछ जातक कथाएं, गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों द्वारा कही गयी हैं।ImageSource

प्रचलित परम्परा के अनुसार जातक कथाओं की कुल संख्या लगभग 600 है। इनमें से एक जातक कथा है कि एक वन में चार मित्र रहते थे – खरगोश, बंदर, सियार और ऊदबिलाव। चारों मित्र दानवीर बनना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने उपोसथ के दिन परम-दान का निर्णय लिया क्योंकि उस दिन के दान का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। उपोसथ के दिन सुबह चारों मित्र भोजन की तलाश में निकल पड़े। घूमते-घूमते बंदर पके आम का गुच्छा तोड़कर वापस आ गया जबकि सियार दही की एक हांडी और मांस का एक टुकड़ा चुराकर ले आया। ऊदबिलाव गंगा तट पर रखी सात लोहित मछलियों को घर ले आया। तीनों मित्र ने अपने साथ लाई चीजों का दान करने का फैसला लिया जबकि खरगोश ने सोचा कि वह अपने भोजन घास-पात का दान करेगा तो दान प्राप्त करने वाले को कोई लाभ नहीं होगा। इसलिए खरगोश ने स्वयं का दान करने का फैसला लिया।

खरगोश के दान की कहानी जल्द ही पूरे ब्रह्मांड में फ़ैल गई। सक्क को जब इसके बारे में पता चला तो वह सन्यासी के रूप में खरगोश के दान की परीक्षा लेने के लिए पहुंच गए। वैदिक परम्परा में सक्क को शक्र या इन्द्र कहते हैं। सक्क जब चारों मित्रों के पास पहुंचे तो बंदर, सियार और ऊदबिलाव ने अपने साथ लाई चीजों का दान देना चाहा, लेकिन सक्क ने तीनों के दान को अस्वीकार कर दिया। सक्क ने जब खरगोश से दान की याचना की तो खरगोश ने स्वयं को अंगीठी में सेंककर दान करने का प्रस्ताव दिया। सक्क ने खरगोश के प्रस्ताव को स्वीकार किया। जब वहां अंगीठी चलाई गई तो खरगोश ने पहले अपने रोमों को तीन बार झटका ताकि उसके रोमों में मौजूद छोटे जीव ना आग में जल जाए। इसके बाद खरगोश बड़ी शालीनता से अंगीठी में कूद पड़ा।ImageSource

अंगीठी ने खरगोश को जलाया नहीं क्योंकि वह आग जादुई थी। सक्क सिर्फ उनकी परीक्षा लेना चाहते थे। खरगोश की दानवीरता से सक्क स्तब्ध रह गए। उन्होंने चिरकाल तक उसने ऐसी दानवीरता न देखी थी और न ही सुनी थी। इसके बाद सक्क ने चांद के एक पर्वत को हाथ से मसलकर उसे खरगोश का आकार दे दिया और कहा कि जब तक चांद पर खरगोश का निशान रहेगा, खरगोश की दान-वीरता को याद रखा जाएगा।