जातक या जातक पालि या जातक कथाएं भगवान बुद्ध द्वारा कही गई हैं। इन कथाओं में मनोरंजन के माध्यम से नीति और धर्म को समझाने का प्रयास किया गया है। एक जातक कथा है कि वाराणसी में एक कर्त्तव्यनिष्ठ गृहस्थ रहता था। उसके घर में पत्नी और तीन बेटियां थी। लेकिन गृहस्थ का अल्प आयु में ही निधन हो गया। मरने के बाद उसने एक स्वर्ण हंस के रुप में पुनर्जन्म जन्म लिया। लेकिन हंस के पूर्व जन्म के संस्कार इतने प्रबल थे कि उसे अपने पूर्व जन्म की घटनाएं और भाषा के बारे याद रहा।
एक दिन अपनी पत्नी और बेटियों के मोह में आकर हंस उड़ते हुए वाराणसी पहुंच गया। यहां उसने देखा कि उसकी मृत्यू के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चुकी है। उसकी पत्नी और बेटियों ने सुंदर वस्त्रों की जगह साधारण वस्त्र धारण किए हुए हैं। घर में वैभव का कोई सामान नहीं था। यह देख हंस काफी दुखी हुआ। उसने अपनी पूर्व जन्म की पत्नी व बेटियों को अपना परिचय देते हुए उन्हें आलिंगन में ले लिया। इसके बाद जब वह वापस लौटने लगा तो उसने अपने परिवार को सोने का एक पंख दिया ताकि वह उसे बेचकर अपनी गरीबी दूर कर सके। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। हंस समय-समय पर अपने परिवार से मिलने आता और उन्हें सोने का एक पंख देकर चला जाता।
हंस की बेटियां उसके दानशीलता से संतुष्ट थी मगर उसकी पत्नी के मन में लालच आ गया। उसने सोचा थोड़े-थोड़े दिनों में सोने का एक पंख लेने से तो अच्छा है कि एक साथ सारे पंख लेकर धनवान बन जाए। उसने यह बात जब अपनी बेटियों को बताई तो बेटियों ने इसका विरोध किया। एक दिन जब हंस घर पहुंचा तो संयोगवश वहां उसकी बेटियां नहीं थी। पत्नी ने हंस को अपने पास बुलाया और उसकी गर्दन पकड़कर एक झटके में ही सारे पंख नोच डाले। लेकिन जब पत्नी ने हंस के पंखों को समेटा तो उसके हाथ में साधारण पंख ही लगे क्यों कि हंस की इच्छा के बिना उसके पंख नोचे जाने पर वह साधारण पंख बन जाते थे।ImageSource
दूसरी तरफ जब बेटियों ने हंस को बिना पंखों के खून से लथपथ देता तो उन्हें पूरी बात समझ में आ गई। उन्होंने तत्काल हंस का उपचार किया और उसकी सेवा करती रही। कुछ दिनों बाद हंस के वापस पंख आने लगे, लेकिन इस बार पंख सोने के नहीं बल्कि साधारण थे। जब हंस उड़ने में सक्षम हो गया तो वह उड़कर वहां से चला गया और दोबारा कभी लौटकर नहीं आया।