बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी अवसर की प्रतीक्षा नहीं करता बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लिए अवसर की खोज कर लेता हैं। बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध ने भी जातक कथाओं के माध्यम से यह समझाने का प्रयत्न किया है। ऐसी ही एक जातक कथा है कि किसी समय एक गांव में रामसिंह नाम का एक किसान अपनी पत्नी और अपने बेटे सुंदर के साथ रहता था। सुंदर बुद्धिमान बालक था। रामसिंह चाहता था कि उसका बेटा अच्छी शिक्षा प्राप्त करके बड़ा आदमी बने और उनके बुढ़ापे का सहारा बने।
यह सोचकर रामसिंह ने सुंदर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए गांव के पंडित के पास भेजा। सुंदर ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की और परीक्षा में अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण हुआ। पूरे गाँव में सुंदर की वाहवाही होने लगी। इससे रामसिंह बहुत खुश हुआ। एक दिन रामसिंह ने सोचा कि सुंदर ने शिक्षा तो प्राप्त कर ली, लेकिन वह गाँव में क्या करेगा। यहां तो वह मेहनत मजदूरी ही कर सकता है। इससे अच्छा होगा कि मैं उसे शहर भेज दूँ ताकि वह कोई अच्छा काम-धंधा सीखकर बड़ा आदमी बन सके। रामसिंह की पत्नी पहले तो अपने बेटे को शहर भेजने के लिए राजी नहीं हुई, लेकिन रामसिंह ने उसे समझाया कि यह उनके बेटे के भविष्य के लिए जरुरी है। इसके बाद रामसिंह की पत्नी भी इसके लिए राजी हो गई।
रामसिंह ने अपने बेटे सुंदर को शहर भेजने से पहले ऊँच-नीच की शिक्षा दी और अपने एक मित्र का पता दिया। रामसिंह ने कहा कि मैं अपने मित्र से कई दिनों से मिला नहीं हूँ, लेकिन मुझे विश्वास हैं कि वह तुम्हें शरण देगा और रोजगार ढूंढने में तुम्हारी मदद करेगा। सुंदर अपने माता-पिता का आशीर्वाद लेकर शहर आ गया। खोजते-खोजते सुंदर अपने पिता द्वारा बताए स्थान पर पहुंचा तो उसे पता चला कि उसके पिता के मित्र की मृत्यु हो चुकी है जबकि उनके परिवार का भी कुछ पता नहीं है।
इस विपरीत परिस्थिति में भी सुंदर ने हिम्मत नहीं हारी और एक सराय में ठहरकर रोजगार खोजने में जुट गया। वह जिस भी दुकान पर रोजगार मांगने के लिए जाता दुकानदार उसकी बातों से प्रभावित जरूर होता लेकिन जान-पहचान ना होने के कारण उसे रोजगार देने से मना कर देता। धीरे-धीरे सुंदर के पास पैसे खत्म होते जा रहे थे। एक दिन सुंदर पेड़ की छाँव में बैठकर इन विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकलने के बारे में सोच रहा था। इस दौरान उसका ध्यान कुछ दूरी पर बैठकर बातचीत कर रहे दो व्यक्तियों पर गया। उनमें से एक व्यक्ति दूसरे से कह रह था कि तू बड़ा नसीब वाला है। हम दोनों साथ-साथ राजदरबार की सेवा करने के लिए आए थे। आज तू राजा का विश्वासपात्र खजांची बन गया है जबकि मैं सिपाही का सिपाही रह गया। इस पर दूसरे मित्र ने कहा कि मैं अपनी बुद्धिमता और ईमानदारी से महाराज का विश्वासपात्र बना हूँ। उसने सड़क किनारे पड़े मरे हुए चूहे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि तू वह मरा हुआ चूहा देख रहा है ना, बुद्धिमान व्यक्ति इस मरे हुए चूहे से भी चार पैसे कमा लेगा। यह कहकर दोनों व्यक्ति से वहां से चले गए।
सुंदर के दिमाग में यही बात घूमती रही कि कोई इस मरे हुए चूहे से चार पैसे कमा सकता है। इसी दौरान सुंदर को एक सेठ की आवाज सुनाई दी कि कोई मेरी बिल्ली को पकड़ने में मदद करो। सुंदर ने पास जाकर देखा तो पता चला कि सेठ की बिल्ली झाड़ियों में छिपकर बैठी है और पंजे झाड़-झाड़कर गुर्रा रही है। सुंदर को तुरंत उस व्यक्ति की बात याद आई और उसने सेठ से कहा कि मैं आपकी बिल्ली को झाड़ियों से बाहर निकालकर आपको दूंगा तो आप मुझे क्या दोगे? सेठ ने कहा कि मैं तुझे चांदी का एक सिक्का दूंगा।
सुंदर मन ही मन खुश हुआ और एक रस्सी ढूंढ़कर चूहे को उससे बांधा व झाड़ियों के बाहर रख दिया। चूहे को देखकर बिल्ली के मुंह में पानी भर आया और वह झाड़ियों से बाहर आ गई। सुन्दर ने उसकी पीठ पर प्यार से हाथ फेरा और उसे गोद में उठा लिया।