भगवान बुद्ध इस समाज को बहुत कुछ देकर गए, उनके द्वारा स्थापित आदर्श सदैव हम सबका मार्गदर्शन करते हैं। जातक कथाएँ भी ऐसे ही आदर्शों की मिसाल हैं, जो उनके पूर्वजन्मों की बेहद लोकप्रिय कहानियाँ हैं, जिन्हें बौद्ध धर्म के सभी मतों में संरक्षित किया गया है। एक जातक कथा है कि एक वन में रुरु नाम का स्वर्ण मृग रहता था। रुरु इतना खूबसूरत था कि कोई उसे एक बार देख ले तो देखता ही रह जाए। रुरु बड़ा ही ज्ञानी था। उसे अपने पूर्व जन्म की घटनाएं याद थी। साथ ही वह मनुष्यों से उन्ही की भाषा में भी बात कर सकता था।
एक दिन की बात है कि रुरु वन में विचरण कर रहा था। इस दौरान उसे एक व्यक्ति की आवाज सुनाई दी। रुरु जब आवाज का पीछा करते हुए नदी के किनारे पहुंचा तो उसने देखा कि एक व्यक्ति नदी की लहरों में बहता हुआ चला जा रहा है। रुरु को उस व्यक्ति पर दया आ गई और वह उसे बचाने के लिए नदी में कूद गया। रुरु बड़ी मुश्किल से अपनी जान पर खेलकर व्यक्ति को बचाकर सुरक्षित नदी से बाहर ले आया। व्यक्ति ने इसके लिए रुरु को धन्यवाद दिया। इस पर रुरु ने उससे कहा कि अगर तुम सचमुच मुझे धन्यवाद देना चाहते हो तो यह बात किसी से मत कहना कि तुमने वन में स्वर्ण मृग देखा है। क्योंकि लोगों को इस बारे में पता चल गया तो वह मेरा शिकार करने के लिए वन में आ जाएंगे। उस व्यक्ति ने रुरु को यह बात किसी को नहीं बताने का भरोसा दिया और अपने घर चला गया।
कुछ दिनों बाद उस राज्य की रानी को सपने में रुरु के दर्शन हुए। सपने में रुरु को देख रानी उसे पाने के लिए लालायित हो उठी। रानी के कहने पर घमंडी राजा ने राज्य में घोषणा करवा दी कि जो भी शख्स स्वर्ण मृग के बारे में सही जानकारी देगा उसे एक गांव और 10 सुंदर युवतियां इनाम में दी जाएगी। जब उस व्यक्ति को राजा की घोषणा के बारे में पता चला तो उसके मन में लालच आ गया। वह तुरंत राजा के पास पहुंचा और बताया कि वन में स्वर्ण मृग कहां पर रहता है। इसके बाद राजा उस व्यक्ति और कुछ सिपाहियों के साथ वन में पहुंचा और रुरु को घेर लिया। राजा ने जैसे ही धनुष पर बाण चढ़ाकर रुरु पर निशाना साधा, उसी समय रुरु ने राजा को थोड़ा रोकते हुए उससे पूछा कि, मुझे मारने से पहले एक बात बताओ कि आपको किसने बताया कि मैं यहां रहता हूँ। इस पर राजा ने उस व्यक्ति की तरफ इशारा किया, जिसकी जान रुरु ने बचाई थी। ये जानकार रुरु बहुत दुखी हुआ, हताश होकर उसने कहा-
“निकाल लो लकड़ी के कुन्दे को पानी से,
न निकालना कभी एक अकृतज्ञ इंसान को।”
रुरु की बात सुनकर राजा अचंभित हो गया। जब राजा ने रुरु से इसका मतलब पूछा तो रुरु ने उस व्यक्ति की जान बचाने की पूरी कहानी राजा को सुनाई। रुरु की कहानी सुनकर राजा का घमंड चूर-चूर हो गया। राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ और रुरु का शिकार न करने व उस व्यक्ति को मृत्यु दंड देने का फैसला किया। हालांकि रुरु ने राजा से उस व्यक्ति को मृत्यु दंड न देने की प्रार्थना की। राजा ने रुरु के निवेदन को स्वीकार कर रुरु को अपने महल में आमंत्रित किया। रुरु राजा का निमंत्रण स्वीकार करके उनके साथ चला गया और कुछ दिनों तक राजा का आतिथ्य स्वीकार कर वापस वन में लौट आया।