माता सीता के हरण के बाद भगवान श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में मनुष्यों ही नहीं बल्कि पक्षियों और जानवरों ने भी भगवान श्रीराम की खूब सहायता की थीं और अपने प्राणों की आहुति दी थीं। रामायण में कौए के आकार के काकभुशुण्डी, देव पक्षी गरूड़ और अरुण के साथ-साथ देव पक्षी अरुण के दोनों पुत्र सम्पाती और जटायु का विशेष उल्लेख मिलता हैं। सम्पाती और जटायु ने भगवान श्रीराम को माता सीता तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं। श्रीराम के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वालों में जटायु का नाम सबसे पहले आता है।
शास्त्रों के अनुसार देव पक्षी गरूड़ और अरुण ऋषि कश्यप के वंशज थे। इनमें से गरूड़ भगवान विष्णु के वाहन बन गए जबकि अरुण भगवान सूर्य के रथ के सारथी बन गए। आगे चलकर अरुण के दो पुत्र हुए सम्पाती और जटायु। दोनों ही भाई विंध्याचल पर्वत की तलहटी में रहने वाले ऋषियों की रक्षा करते थे। दोनों भाइयों ने मिलकर कई शक्तिशाली राक्षसों का वध किया। एक दिन दोनों भाइयों ने सूर्यमंडल को स्पर्श करने के लिए उड़ान भरी, लेकिन सूर्य के तेज के कारण जटायु जलने लगे। तब सम्पाती ने जटायु को अपने पंखों के नीचे छुपा लिया। हालांकि सूर्य के निकट पहुंचते ही सम्पाती के पंख भी जल गए और वह समुद्र तट पर गिरकर चेतनाशून्य हो गए। इस दौरान वहां से गुजर रहे एक मुनि ने सम्पाती का उपचार किया। वहीं जटायु भी एक पर्वत जाकर गिर गए। इस तरह दोनों भाई अलग-अलग हो गए।
अपने भाई से अलग होने के बाद जटायु पंचवटी वन में रहने लगे। यहां एक दिन उनकी मुलाकात राजा दशरथ से हुई और दोनों मित्र बन गए। वनवास के समय जब भगवान श्रीराम पंचवटी वन में पहुंचे तो यहां उनकी मुलाकात जटायु से हुईं। जब जटायु को पता चला कि श्रीराम उनके मित्र राजा दशरथ के पुत्र हैं तो वह बहुत खुश हुए। उन्होंने वन में श्रीराम की रक्षा करने का वचन दिया। जब रावण माता सीता का हरण करके ले जा रहा था, तब जटायु ने रावण को रोकने के लिए उसके साथ युद्ध किया। लेकिन रावण ने अपनी तलवार से जटायु के दोनों पंख काट दिए। मरणासन्न होकर भूमि पर गिरे जटायु ने ही श्रीराम को बताया था कि माता सीता को रावण लंका की तरफ लेकर गया है। जटायु के मरने के बाद राम ने उसका वहीं अंतिम संस्कार और पिंडदान किया।
माता सीता को खोजते हुए भगवान हनुमान, जामवंत और अंगद समुद्रतट पर पहुंचे तो उनकी मुलाकात वहां विशालकाय पक्षी सम्पाति से हुईं। अंगद ने जब सम्पाति को उनके भाई जटायु की मृत्यु का समाचार दिया तो वह बहुत दुखी हुए। सम्पाति ने उन्हें बताया कि मैंने भी रावण को सीता माता को ले जाते हुए देखा हैं, लेकिन कमजोर पंखों के कारण वह रावण से युद्ध नहीं कर सकें। इसके बाद सम्पाति ने अपनी दूरदृष्टि से भगवान हनुमान को बताया कि सीता माता अशोक वाटिका में सुरक्षित बैठी हैं। इस तरह अपने भाई जटायु की तरह सम्पाति ने भी माता सीता तक पहुंचने में भगवान श्रीराम की सहायता की।
सम्पाती और जटायु ही नहीं बल्कि उनके पिता अरुण के भाई गरुड़ ने भी भगवान श्रीराम की सहायता की थीं। युद्ध के समय जब रावण के पुत्र मेघनाद ने श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गरूड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था।