महाभारत में कौरवों को पराजित करने के बाद युधिष्ठिर राजा बन गए थे. लंबे समय तक वे राजा की गद्दी पर काबिज रहे. और जब उन्हें ज्ञात हुआ कि अब सबकुछ छोड़ने का समय आ रहा है. तब उन्होंने अभिमन्यु के पुत्र (पारीक्षित) को अपना सिंहासन सौंप दिया. और फिर युधिष्ठिर अपने सभी भाईयों (भीम, अर्जुन, नकुल-सहदेव) और द्रौपदी के साथ वन को चले गए.
धर्म के अनुसार पारीक्षित राजपाट को आगे बढ़ा ही रहे थे कि उनकी मुलाकात कलियुग से हुई. कलियुग ने पारीक्षित से कहा “श्रीकृष्ण अपने धाम लौट गए हैं. इसलिए अब द्वापर युग खत्म हो गया है. और अब कलियुग की शुरूआत हो चुकी है. इस वजह से अब मेरा राज्य चलेगा”. यह सुन कर पारीक्षित क्रोधित हो गए. फिर उन्होंने उसे मारने के लिए शस्त्र निकाला और कहा कि तुम मेरे राज्य से चले जाओ.
यह सुन कलियुग ने पारीक्षित से कहा कि हे राजन सूर्य-चंद्र तक आपके बाणों की पहुंच में हैं, ऐसे में, मैं कहां जाऊं? मैं मानता हूं कि मेरे अंदर अवगुण बहुत ज्यादा है, लेकिन एक गुण ये भी है कि जो भी व्यक्ति भगवान का नाम जप करेगा, उस पर कलियुग का असर नहीं होगा. अब आप ही मुझे यहां रहने के लिए कोई स्थान बता दीजिए.
यह सुन पारीक्षित का गुस्सा शांत हो गया और कलियुग को उनका निवास स्थान बताते हुए कहा, कि तुम असत्य, काम, क्रोध और मद के साथ रह सकते हो. ये सब सुनने के बाद कलियुग ने पारीक्षित के समक्ष अपनी एक इच्छा रखी कि ‘हे राजन आपने मुझे चार स्थान अपनी इच्छा के अनुसार दिए हैं, तो एक स्थान पर मेरी इच्छा के अनुसार भी रहने दीजिए, मैं सोने में भी निवास करना चाहता हूं. पारीक्षित ने कलियुग की इच्छा को पूरा किया.
इन सभी बातों का मंतव्य यही है व्यक्ति ईमानदारी और मेहनत से सोना या धन कमाते हैं उन पर कलियुग का वास नहीं रहता. परंतु गलत तरीके से कमाए हुए धन या सोने में कलियुग का निवास रहता है.
कलियुग में नाम जाप करने का महत्व
कलियुग में जो भी व्यक्ति सच्चे ह्रदय से भगवान की पूजा करते हैं उनके सभी पाप व कष्ट दूर हो जाते हैं. इसीलिए व्यक्ति को धर्म-कर्म करते रहना चाहिए और अपने इष्टदेव को याद करते रहना चाहिए. और अन्य लोगों को भी प्रेरित करते रहना चाहिए.