शास्त्रों के अनुसार एक बार रूद्र नाम के दैत्य का अंत करने के लिए सभी देवता भगवान शिव की शरण में पहुंचे थे। लेकिन भगवान शिव उस समय समाधि में लीन थे। समय की कमी थी, इसलिए देवता अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकते थे। तब देवताओं के राजा इंद्र ने कामदेव से भगवान शिवजी की तपस्या भंग करने के लिए कहा, और कामदेव ने पुष्प बाण चलाकर भगवान शिव की समाधि को भंग कर दिया था। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उनके नेत्र से निकली अग्नि से कामदेव भस्म हो गए। जब कामदेव की पत्नी रति को इसके बारे में पता चला तो वह भगवान शिव के पास जाकर विलाप करने लगी। रति ने भगवान शिव से कहा कि आपने मेरे पति को क्यों मारा। उनका क्या दोष था। वे तो सिर्फ अपने राजा की आज्ञा का पालन कर रहे थे। आपको दंड देना है तो इंद्र को दीजिए। मेरे पति को मुझे लौटा दीजिए।
शिव ने कहा, देवी मैंने आपके पति को मारा नहीं है, उसे अनंत जीवन दे दिया है। अब से कामदेव हर जीव के शरीर में अदृष्य रूप में मौजूद रहेंगे, लेकिन रति नहीं मानीं। उन्होंने कहा, मुझे मेरे पति सशरीर चाहिए, न कि अदृष्य रूप में।
तब भगवान शिव ने उनसे कहा कि द्वापर युग में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म होगा। श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में कामदेव का जन्म होगा। ऐसे में रति अपने पति की प्रतीक्षा करने लगी।
रति ने शिव की बात मानी। वो धैर्य और संयम के साथ द्वापर का इंतजार करने लगीं। प्रद्युम्न असल में कामदेव के अवतार थे। मान्यता है कि, द्वापर में कामदेव ने भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लिया और रति मायादेवी के रूप में उनकी पत्नी बनीं।