ज्ञानमूर्ति कौशल्या माता

एक दिन अचानक कौशल्या माता राम जी से कहती हैं कि राम ! आयु का चौथापन चल रहा है। कैकई और सुमित्रा सहित अब हम तीनों को आत्म कल्याण के लिए एकांतवास और वानप्रस्थ ले लेना चाहिए।

राम जी कहते हैं- माता आप ऐसी बात क्यों कहती है ? आपके जाने के पश्चात मैं अकेला रह जाऊंगा। इतने सारे उत्तरदायित्व को उठाकर चलते चलते जब मैं थक जाऊंगा तो किस की गोद में बैठ कर थोड़ा सा विश्राम कर सकूंगा। इस पर कौशल्या माता जो कहती हैं वो सीख धरती के हर  मानव को सुननी और सीखनी चाहिए-

“ये माया मोह की बातें हैं राम। यदि यह सोचकर मनुष्य संसार में रहे कि वहां उसकी आवश्यकता है तो वह युग युगांतर तक भी मरना नहीं चाहेगा क्योंकि उसके पुत्र को उसकी आवश्यकता है उसके बाद उसके पुत्र के पुत्र को उसकी आवश्यकता होगी, फिर व्यापार को उसकी आवश्यकता होगी, राज्य को होगी, समाज को होगी। यहां तक कि वो यह सोचने लग जाएगा के मेरे बिना यह धरती कैसे स्थिर रहेगी, यह संसार कैसे चलेगा?

इसी प्रकार अपनी आवश्यकताओं का जाल वह स्वयं बुनता चला जाएगा। उसे लगेगा कि मैं तो केवल अपने कर्तव्यों से विवश होकर यहां रह रहा हूं वो ये नहीं समझेगा कि ये केवल उसका मोह मात्र है। वो नहीं रहेगा तब भी संसार ऐसे ही चलेगा।

हर आने वाली पीढ़ी अपना मार्ग स्वयं निर्धारित करती है। और राम! सब कहते हैं कि तुम तो भगवान का अवतार हो। मोह माया की बातें तुम्हें शोभा नहीं देती।”

राम जी कहते हैं- ‘मैं कौन हूं यह तर्क का विषय नहीं है परंतु इतना अवश्य जानता हूं यदि मां का आशीर्वाद हो तो पुत्र भगवान भी बन सकता है।’

माता कौशल्या सच में धर्म नीति और वैराग्य का ही मूर्तिमान स्वरूप है