जब हम फँस जाएँ मंझधार के भँवर में तो ऐसे निकल सकते हैं बाहर

जीवन एक नैया है, और ईश्वर उसके खेवैया. पूरा जीवन एक यात्रा की तरह होता है, तो इस यात्रा में कभी तेज़ आंधियां आतीं हैं. थपेड़े आते हैं. कुछ पड़ाव अच्छे होते हैं. कुछ पास आकर भी दूर होते जाते हैं. लेकिन श्रीराम का नाम एक बार लेकर तो देखो , इस जीवन नैया को वही तो पार लगाते हैं. मंझधार के भंवर में जब कभी हम फंस जाते हैं. रास्ते भी नज़र नहीं आते, दूर दूर तक सन्नाटा और अथाह भवसागर दिखाई देता है. उस स्थिति में मन को समझाना होता है. आँखें बाद करके प्रभु का नाम लेना होता है. और जब धीरे धीरे आँखें खुलती हैं. तो एक उंगली हमारे जीवन की आस को थामे हुए दिखती है. वही आस है, प्रभु के नाम की, जो धीरे धीरे हमें दुखों और परिस्थितियों के भंवर से पार ले जाती है. जहाँ जहाँ इंसान जाता है, वहां से उसकी यादें, उसके किये कार्य, बहुत कुछ जुड़ जाता है.

सभी इस यात्रा को तय करते हैं, बस सबके तरीके भिन्न होते हैं. कोई छोटी छोटी परिस्थिति से डरकर हार जाता है, तो कोई बड़ी से बड़ी परेशानी को आसानी से पार कर जाता है.सुख और दुःख का ये आभास भी क्षणिक होता है. कोई भी किसी घटना पर बहुत लम्बे समय तक एक जैसा नहीं रह सकता. क्योंकि हर समय आगे बढ़ना ही होता है. हर घटना जितनी देर तक नई होती होती है, नई घटना घटित होने के बाद वो उतनी ही पुरानी हो जाती है. क्योंकि निरंतरता को रोका नहीं जा सकता, वही तो गति है. और उसी गति में हर आने वाली घटना का आना तय होता है.

बस हम सबको अपनी जीवन यात्रा में कुछ ऐसा करके जाना है, जो आगे आने वाली पीढ़ी का भी मार्गदर्शन करे, बस इसी सोच से इंसान स्वार्थ, लालच, बुराई, क्रोध, अहंकार और अज्ञानता के अन्धकार से बाहर निकल जाता है.