बड़ी मुश्किल से कुंभकरण की नींद टूटती है और वह रावण के सम्मुख आता है।रावण से सारा वृतांत सुनने के बाद कुंभकर्ण रावण से कहता है — ‘आंखें बंद कर लेने से सूर्य का प्रकाश कम नहीं हो जाता अर्थात जो सत्य है वह सत्य है।राम तीनों लोकों के स्वामी हैं, उनसे युद्ध जीतना असंभव है।’
राजा के लिए यह उचित ही नहीं आवश्यक भी है कि वह हर महत्वपूर्ण कार्य अपने परम विद्वान और हितेषी मंत्रियों के परामर्श से ही करे।राजा को ऐसे चाटुकारों और स्वार्थी मंत्रियों के जाल में नहीं फंसना चाहिए जो अपने निजी हित और धन लाभ के लिए अपने देश को भी शत्रु के हाथ बेच सकते हैं।’
कुंभकरण द्वारा रावण के लिए कही गई है सारी बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक और उतनी ही उपयोगी है क्योंकि रावण की सोच वाले लोग आज भी समाज में बहुतायत में हैं।
कुंभकरण के इतना समझाने पर रावण अपनी भूल का आभास तो करता है परंतु शास्त्र का तर्क देते हुए कहता है– ‘जो बीत गया बुद्धिमान उसका शोक नहीं करते, कर्म योगी भविष्य की चिंता नहीं करता।भाई ने यदि कोई पाप भी किया हो अधर्म भी किया हो और वह संकट में हो तो जो उसका साथ देता है वही भाई कहलाता है।’
रावण ने यह बातें किसी भी संदर्भ में कही हो पर है बिल्कुल सत्य। कुंभकरण एक भाई का कर्तव्य निभाने के लिए सब कुछ जानते हुए भी युद्ध के लिए निकल जाता है।
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Jai Shriram 🙏#goodmorning
Gepostet von Arun Govil am Donnerstag, 4. Juni 2020
रण में कुंभकरण को आया देख विभीषण ने राम जी से कहा कि प्रभु आपकी आज्ञा हो तो कुंभकरण से युद्ध करने मैं जाऊं इस पर राम जी ने कहा–
अपने स्वार्थ के लिए हम आपको संकट में नहीं डालेंगे, हम यह भी नहीं चाहते कि भाई के हाथों भाई का वध हो। ऐसी है राम की मर्यादा, ऐसा है राम का आदर्श विचार।
आज जहां अपना मतलब निकालने के लिए लोग भाई भाई को आपस में लड़ा रहे हैं वही राम जी का यह विचार आज हर इंसान को अपने व्यवहार में उतारना चाहिए।
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विभीषण कुंभकरण से युद्ध करने नहीं बल्कि उसे समझाने जाते हैं और कहते हैं-‘दुष्कर्म और दुराचार के लिए अपने बंधु बांधवों को भी दंड देना अधर्म नहीं है।’
कुंभकरण कहता है ‘भाइयों के रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं यह भरत के त्याग और लक्ष्मण की सेवा से सीखना था विभीषण पर तुमने तो अपने ही भाई को छोड़ दिया।’
तर्क बहुत प्रबल था परंतु विभीषण ने जो उत्तर दिया वह ध्यान देने योग्य है–‘भारत जैसे त्यागी और लक्ष्मण जैसे सेवाभावी भाई पाने के लिए राम जैसा आदर्श बड़ा भाई भी तो होना चाहिए।’ रामायण के इस प्रसंग का संकेत हम सब को समझना चाहिए।
हम अपने प्रति दूसरों का हर कर्तव्य याद रखते हैं परंतु दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों को अक्सर भूले रहते हैं। विवाद वैमनस्य और दुख का कारण यही है कि हमें हमारे सारे अधिकार तो याद हैं पर हम अपने कर्तव्यों को भूल रहे हैं।
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विभीषण की अनुनय विनय और समझाना ना रावण माना था ना कुंभकरण माना। वो युद्ध के लिए आया और राम जी के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ।