कुंभकरण की लम्बाई जानकर हो जाएंगे हैरान, हजारों लोगों से ज्यादा था उसका भोजन

सनातन धर्म में शायद ही कोई होगा जिसने कुंभकरण का नाम न सुना होगा। लंका के राजा रावण के इस भाई को पराक्रम की बजाय उसकी नींद की वजह से पहचाना जाता है। कुंभकरण के सोने के बारे में कहा जाता है कि वह छह महीने बाद सिर्फ एक दिन जागता था। कुंभकरण रावण का छोटा भाई तथा ऋषि विश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र था। कुंभकरण के विशाल शरीर के बारे में जानकर आपको आश्चर्य होगा, उसकी ऊंचाई छह सौ धनुष (धनुष की लंबाई एक मीटर से डेढ़ मीटर होती थी) तथा मोटाई सौ धनुष थी। इतना ही नहीं ऋषि पुत्र होने के कारण कुंभकर्ण को तमाम वेदों और धर्म-अधर्म की जानकारी थी। वह भूत और भविष्य का ज्ञाता भी था।

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कुंभकरण छह माह सोने के बाद जब एक दिन के लिए जागता था तो वह इस दिन में भोजन करके फिर सो जाता था। कुंभकरण की इस नींद के पीछे ब्रह्माजी का वरदान था। कुंभकरण ने ब्रह्माजी की कठिन तपस्या की थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा। वास्तव में कुंभकरण इंद्रासन मांगना चाहता था, लेकिन इंद्रासन की जगह उसने गफलत में निद्रासन मांग लिया। इस गफलत और जिह्वा के फिसलने का भी एक बड़ा कारण है। हुआ यूं कि कुंभकरण जब इंद्रासन के लिए ब्रह्माजी की तपस्या कर रहा था, तब इंद्रदेव ब्रह्माजी के पास गए और हाथ जोड़कर विनती करने लगे कि ब्रह्माजी कुछ उपाय कीजिए। अब कुंभकरण को वरदान तो देना ही था, लेकिन इंद्रासन नहीं देना था। इसलिए ब्रह्माजी ने ज्ञान की देवी सरस्वतीजी से निवेदन किया कि वह उसकी जुबान पर विराजें। जब सरस्वतीजी कुंभकरण की जुबान पर विराजमान हो गर्इं, तब ब्रह्माजी ने कुंभकरण से कहा मांगो वत्स, क्या चाहिए तुम्हें, तभी कुंभकरण ने कहा मुझे निद्रासन दे दीजिए और ब्रह्माजी ने कहा तथास्तु। बाद में जब कुंभकरण को इसका पश्चाताप हुआ तो ब्रह्माजी ने कहा वह छह महीने तक सोता रहेगा और फिर एक दिन के लिए जागेगा और फिर छह महीने के लिए सो जाएगा। इसके साथ ही ब्रह्माजी ने उसे सचेत किया कि यदि कोई इसे बलपूर्वक उठाएगा तो वही दिन कुंभकरण का अंतिम दिन होगा।

कुंभकरण के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब उसका जन्म हुआ तो वह कई लोगों को खा गया था। इसके बाद सभी देवता बहुत भयभीत हो गए और उन्होंने इंद्र से इसके लिए मदद मांगी। इस पर जब इंद्र ने कुंभकरण से युद्ध किया तो कुंभकरण जीत गया। कुंभ अर्थात घड़ा और कर्ण अर्थात कान, बचपन से ही बड़े कान होने के कारण उसका नाम कुंभकरण रखा गया था। वह विभीषण और सूर्पणखा का बड़ा भाई था। बचपन से ही उसमें बहुत बल था। एक बार में वह जितना भोजन करता था, उतना कई नगरों के प्राणी मिलकर भी नहीं कर सकते थे।

कुंभकरण का विवाह वेरोचन की बेटी व्रजज्वाला से हुआ था। इसके अलावा करकटी भी उसकी पत्नी थी। इन दोनों से उसे तीन बच्चे थे। करकटी राक्षसी सह्याद्री की राजकुमारी थी, जिस पर मुग्ध होकर कुंभकर्ण से उससे शादी कर ली थी, जिससे भीमासुर का जन्म हुआ था। कुंभकरण का एक तीसरा विवाह भी हुआ था। ये विवाह कुंभपुर के महोदर नामक राजा की बेटी तडित्माला से हुआ था। व्रजज्वाला से दो बेटे थे। उनके नाम कुंभ और निकुंभ थे। निकुंभ काफी शक्तिशाली था। उसे कुबेर ने निगरानी का खास दायित्व सौंप रखा था।

वास्तव में कुंभकरण को इस बात का पता था कि राम भगवान विष्णु का अवतार हैं। राम-रावण के युद्ध के समय जब कुंभकर्ण को बलपूर्वक जगाया गया और उसे कारण बताया गया तो उसने बड़े भाई रावण को खूब खरी-खरी सुनाई और कहा कि उसने गलत काम किया है। इसके बाद भी उसने युद्ध में भाई का साथ दिया। वह वानर सेना के कई योद्धाओं पर भारी पड़ा था, अंतत: भगवान श्रीराम ने उसका अंत कर उसे मोक्ष दिलाया।