भगवान श्रीराम को श्राप से बचाने के लिए लक्ष्मण ने स्वीकार किया मृत्युदंड

भगवान श्रीराम की तरह ही उनके भाई लक्ष्मण भी रामायण के आदर्श पात्र है। दोनों भाइयों के बीच अपार प्रेम था। लक्ष्मण हर समय भगवान श्रीराम के साथ उनके साए की तरह रहे। हर विपरीत स्थिति में लक्ष्मण ने अपने भाई का साथ दिया। जब राजा दशरथ ने भगवान श्रीराम को वनवास पर भेजा तो लक्ष्मण भी उनके साथ वनवास पर गए। यही कारण है कि आज भी भगवान श्रीराम और माता सीता के साथ लक्ष्मण की पूजा होती है। दोनों भाइयों में अत्यधिक स्नेह होने के बावजूद एक समय ऐसा भी आया जब भगवान श्रीराम ने अपने ही भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया।

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शास्त्रों के अनुसार एक बार यम देवता ऋषि के भेष में भगवान श्रीराम के पास पहुंचे। यम देवता ने भगवान श्रीराम से कहा कि मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है, लेकिन उससे पहले आप मुझे वचन दीजिए कि जब तक हमारा वार्तालाप चलेगा तब तक हमारे बीच कोई नहीं आएगा। अगर कोई ऐसा करता हैं तो आप उसे मृत्युदंड देंगे। भगवान श्रीराम ने यम देवता को वचन दिया और उस कक्ष के द्वार पर अपने भाई लक्ष्मण को खड़ा कर दिया।

भगवान श्रीराम और यम देवता की वार्ता को कुछ ही समय हुआ था कि वहां ऋषि दुर्वासा पहुंच गए और लक्ष्मण से कहा कि श्रीराम को हमारे आने की सूचना दी जाए। जब लक्ष्मण ने ऐसा करने में असमर्थता जाहिर की तो ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो उठे। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि यदि तुमने श्रीराम को हमारे आने की सूचना नहीं दी तो मैं श्रीराम और पूरी अयोध्या को श्राप दे दूंगा। ऐसे में श्रीराम और अयोध्या को श्राप से बचाने के लिए लक्ष्मण श्रीराम और यम देवता की वार्ता खत्म होने से पहले ही कक्ष में पहुंच गए और उन्हें ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना दी।

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लक्ष्मण को कक्ष में देख भगवान श्रीराम निराश हो गए. वह अपने भाई को मृत्युदंड नहीं देना चाहते थें, लेकिन यम देवता को दिए अपने वचन से भी मुख नहीं मोड़ सकते थे। ऐसे में उन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ से रास्ता दिखाने की प्रार्थना की। गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को बताया कि किसी को देश निकाला देना भी मृत्युदंड के समान ही होता है, इसलिए आप चाहे तो लक्ष्मण को देश से निकालने का दंड भी दे सकते हैं। गुरु वशिष्ठ की बात सुनकर श्रीराम ने अपने भाई को देश से निकलने का दंड सुनाया। हालांकि लक्ष्मण के लिए अपने भाई से दूर रहना संभव नहीं था। ऐसे में उन्होंने सरयू नदी में जल समाधि लेकर अपने प्राण त्याग दिए और अनंत शेष का अवतार लेकर विष्णु लोक चले गए।