बिगड़ते हुए रिश्तों को समय रहते सम्हालना जरूरी..परिवार में होना चाहिए धार्मिक बातें

आजकल की दौड़भाग से भरी हुई जिंदगी में बहुत सारी चीज़ों को हासिल करने के चक्कर में काफी कुछ पीछे छूटता जा रहा है. समय की कमी इसका सबसे बड़ा कारण है. और जो थोड़ा बहुत समय मिलता भी है, उसे लोग गेजेट्स के साथ निकाल देते हैं. मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी, इन सबके साथ व्यस्त इंसान को अपने आस पास के बिखरते हुए रिश्ते भी नज़र नहीं आते हैं.

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रिश्तों में बढ़ती हुई दूरियों की एक वजह ये भी है, कि आजकल लोग गैरों को अपना बनाने और अपनों को नज़रंदाज़ करने में लगे हुए हैं. यानी मोबाइल और इन्टरनेट के ज़रिये इंसान का नेटवर्क चारों तरफ बढ़ रहा है. लेकिन घर में सिमट रहा है. इन्टरनेट के ज़रिये नए नए दोस्तों की संख्या बढ़ रही है. और सब कुछ होते हुए भी घर में रहने वाले सभी लोग एक दूसरे से बेगाने होते जा रहे हैं. इसे यूँ भी समझ सकते हैं, कि हम फ़ोन पर बात करते हुए, मेसेज करते हुए मन में खूब हँसते हैं, मुस्कुराते हैं, लेकिन जब हमारे अपने हमारे सामने आते हैं तो हम डिप्लोमेटिक हो जाते हैं. हंसी भी नकली हो जाती है. और परिवार के बीच सब एक दूसरे की ज़रूरतें पूरी करने के अलावा और कुछ नहीं होते.

संयुक्त परिवार का सिस्टम तो पहले से बिगड़ चुका है, अन्यथा घर में कोई न कोई तो ऐसा होता था जो सबको अटेंशन देता था. हमारे बड़े बुजुर्ग सबसे बात करते थे. पर अब महानगर की जीवनशैली में बुजुर्ग कहीं और होते हैं, और दो कमरों के छोटे से घर में रहने के बाद भी परिवार के सदस्य एक दूसरे बहुत दूर होते जा रहे हैं.

रिश्तों को समय रहते सम्हालना बहुत ज़रूरी होता है. जीवन में धार्मिकता से भी बहुत कुछ आसान हो जाता है. जिस तरह त्योहारों पर सारा परिवार एक छत के नीचे इकठ्ठा होकर पूजा करता है. उसी तरह हमारे धर्मग्रंथों का ज्ञान भी परिवार को एकत्र कर सकता है. सबके साथ बैठकर थोड़ा समय निकालकर रामायण और भगवतगीता का पाठ किया जा सकता है. हमारे धार्मिक चरित्रों की जानकारियाँ और बातें की जा सकतीं हैं. पुरानी पीढ़ी के बुजुर्ग लोग नई पीढ़ी को हमारे आदर्श धार्मिक चरित्रों की कथाएं सुना सकते हैं. इन सबसे इंसान के मन को तो शांति मिलती ही है. घर में भी सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है. और इंसान गेजेट्स से थोड़ा दूर भी रहता है. सबको एक दूसरे को समझने और जानने का मौका मिलता है.