वैदिक साहित्य में जिस प्रकार वेदों को अपौरुषेय अर्थात दैवीय रचना (जिसकी रचना या निर्माण सांसारिक मानुष्य नहीं कर सकते) माना जाता है वैसी ही मान्यता पुराणों को लेकर भी है। नारद पुराण में कहा गया है कि पुराण भी पहले एक ही था जिसमें सौ करोड़ श्लोक थे और यह पुराण अपने मूल रूप में अभी भी देवलोक में विद्यमान है।
युग परिवर्तन के साथ मानव बुद्धि को सीमित होता देखकर भगवान विष्णु ने ही वेदव्यास के रूप में अवतार लेकर पुराणों को मूर्त रूप दिया। चार लाख श्लोकों का संकलन करके उसे अट्ठारह भागों में विभक्त किया और अट्ठारह पुराणों की रचना की। इन अट्ठारह पुराणों के नाम हैं-
01-ब्रह्म पुराण
02-पद्म पुराण
03-विष्णु पुराण
04-वायु पुराण
05-भागवत पुराण
06-नारद पुराण
07-मार्कंडेय पुराण
08-अग्नि पुराण
09-भविष्य पुराण
10-ब्रह्मवैवर्त पुराण
11-लिंग पुराण
12-वाराह पुराण
13-स्कंद पुराण
14-वामन पुराण
15-कूर्म पुराण
16-मत्स्य पुराण
17-गरुड़ पुराण
18-ब्रह्मांड पुराण
वैदिक मान्यता के अनुसार पुराणों का मूल आकार सौ करोड़ श्लोकों का है, उनमें से चार लाख श्लोकों का संकलन अट्ठारह भागों में बांटकर, अट्ठारह पुराण बने हैं परन्तु इसके बाद भी एक-एक पुराण का विषय बहुत विस्तृत है जो किसी एक लेख में समेटना सम्भव नहीं। अतः हम एक एक करके सभी पुराणों का संक्षिप्त परिचय जानने का प्रयास करेंगे।
01 ब्रह्म पुराण
वेद व्यास जी ने ब्रह्म पुराण में कुल दस हजार श्लोक संकलित किये हैं और इसे दो भागों में बाँटा है-
पूर्व भाग और उत्तर भाग।
पूर्व भाग- ब्रह्म पुराण के पूर्व भाग में प्रजापतियों, देवताओं, असुरों के उत्पत्ति की कथाएं, भगवान सूर्य देव के वंश की कथा, श्रीहरि विष्णु के राम अवतार की कथा, चंद्रवंश का वर्णन और श्रीकृष्ण अवतार की कथा, स्वर्ग लोक, पाताल लोक, विभिन्न नरर्कों, मृत्युलोक और पृथ्वी के सभी द्वीपों का वर्णन है।
दक्ष प्रजापति की कथा, माता पार्वती का जन्म तथा शिव पार्वती के विवाह की कथा ब्रह्म पुराण के पूर्व भाग में वर्णित है।
उत्तर भाग- इस भाग में धर्मराज (यमराज), यमलोक का वर्णन, पितरों के श्राद्ध एवं तर्पण की विधि का वर्णन,
मानव समाज के चार वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र का वर्णन।
चार आश्रम – गुरुकुल, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास के धर्म-कर्म तथा कर्तव्यों का वर्णन।
चारों युगों -सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग, कलयुग का वर्णन। भिन्न भिन्न प्रकार की प्रलय (सांकेतिक, आंशिक, संपूर्ण) का वर्णन।
योग तथा सांख्य के सिद्धांतों का वर्णन है।
ब्रह्म पुराण में वर्णित विषयों का यह एक सांकेतिक संकलन है। इनके अतिरिक्त भी मूल कथाओं से जुड़ी अन्य अनेक कथाएं और उप कथाएं भी इसमें वर्णित हैं।
ॐ तत्सत