आजकल हमें पता ही नहीं चलता हमारे जीवन में क्या क्या छूट रहा है. कौन सा रिश्ता हमसे रूठ गया है, और कौन हमसे कहीं दूर हो गया है. जब हम मुड़कर देखते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है. हम दूसरों के प्रति अपनी नाराजगी का तो ख्याल रखते हैं, लेकिन हमसे कौन नाराज है इसके बारे में नहीं सोचते. अगर कोई और गलतियाँ करता है, तो फिर हम क्यों नहीं कर सकते. जो रिश्ते रूठे हैं, उन्हें मनाने की पहल करना हमारे बड़प्पन का प्रतीक है.
रिश्तों को कैसे सम्हाला जाता है, इस बात के लिए रामायण से अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है. भगवान श्रीराम ने हमें रिश्तों में भरोसा रखना सिखाया. सभी भाइयों को कैसे साथ लेकर चलना है, ये बताया. हर बार हर जगह सबको ये दिलासा दिया कि, समय बीतेगा तो सब ठीक हो जाएगा. माता पिता का अपने बेटों के साथ रिश्ता, बेटों का माँ बाप के प्रति सम्मान, सास का बहुओं के साथ रिश्ता, सभी भाइयों का एक दूसरे पर भरोसा और भावनाओं का सम्मान, यही वो भरोसा था, जिसमें अपने बड़े भाई श्रीराम से वापस आने का वचन लेकर उनके अपने भाई भरत, 14 वर्ष तक तपस्वी बनकर अपने बड़े भाई का राज्य एक सेवक की तरह चलाते रहे. अपने माता –पिता, गुरु सबके लिए प्रभु राम विश्वास की सबसे बड़ी धारणा थे. अपने पूरे परिवार को साथ लेकर चलना, यही उनके जीवन के आदर्श थे.
आज के समय में संयुक्त परिवार बहुत कम बचे हैं. लोग अपने जीवन को छोटे छोटे घरों में गुज़ार देते हैं. लेकिन उस चार दीवारी में भी कई जगह रिश्तों में बिखराव होता है. समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है. लेकिन अगर हम केवल परिवार को अपने साथ लेकर चलने की आदत अपने व्यक्तिव में शामिल कर लें, तो हमारा जीवन काफी आसान हो सकता है. और परिवार के बड़े बुजुर्गों का मार्गदर्शन भी सदैव हमारे साथ रहेगा. जो कठिन समय में मुश्किलों से बाहर निकलने का सबसे सहज तरीका है. हम सब केवल खुद से जुड़े हुए रिश्तों को सही तरीके से निभा लें, तो जिंदगी में बहुत कुछ आसान हो जाता है.