सृष्टि का विनाश बचाने के लिए हमेशा सामने आ गए भगवान भोलेनाथ

भगवान भोलेनाथ के बारे में कहा जाता है कि, यदि वो प्रसन्न हो जाएँ तो कल्याण हो जाता है, और यदि रुष्ट हो जाएँ तो विनाशक बन जाते हैं. तीनों लोकों में उन्हें संहारक के रूप में जाना जाता है. लेकिन जितना संयम और धैर्य उनके स्वरुप में है, उसकी कोई मिसाल नहीं है. उन्होंने सही समय पर स्वयं अपनी उपस्थिति और समर्पण से कई बार सृष्टि को विनाश से बचाया है.

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जब भगवान श्रीराम के पूर्वजों का उद्धार करने के लिए उसी कुल के राजा भागीरथ ने तपस्या करके गंगा मैया को धरती पर लाने के लिए तप किया, तो गंगा के आवेग को सम्हालने के लिए शिवजी ही सामने आये, अन्यथा सम्पूर्ण भूलोक उसके प्रवाह में बह जाता. भगवान विष्णु के चरणों से निकलकर गंगा माँ अपने पूरे आवेग में पृथ्वी की तरफ जा रहीं थी, लेकिन भगवान भोलेनाथ ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर लिया, और गंगा मैया का प्रवाह कम हो गया. उसके बाद गौमुख से निकलकर हिमालय के रस्ते धीरे धीरे पृथ्वी की तरफ जाकर उनका विस्तार हो गया. और आज गंगाजल से समस्त मानवजाति का कल्याण हो रहा है.

ठीक इसी तरह जब अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन की तैयारी हुई और नागराज वासुकि समुद्र मंथन के लिए रस्सी के रूप में तैयार हुए. उसके बाद इतना विष उत्पन्न हुआ, जिससे सर्वनाश हो जाता. लेकिन शिवजी ने यहाँ भी उस विष का पान कर लिया. और उसे अपने कंठ में धारण कर लिया. तब जाकर समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति हुई.

इस तरह भगवान शिव ने ब्रह्माण्ड को कई बार सर्वनाश से बचाया. और अपना सर्वस्व सृष्टि को बचाने के लिए लगा दिया. भगवान भोलेनाथ की उपासना और भक्ति से मनुष्य के समस्त कष्टों का निवारण हो जाता है.