भारतभूमि हमेशा से ही ईश्वर के अवतारों और संतों की चरण-रज से पवित्र रही है। यही वह देश है जहां श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे विष्णु अवतार हुए हैं। इन अवतारों के माध्यम से ईश्वर ने लोगों का जीवन स्तर सुधारा और मानवता का मार्ग दिखाया। जब भगवान राम की बात आती है तो उन्होंने अपनी लीलाएं रचकर कई यात्राएं की और इसके जरिए ऋषि-मुनियों को दर्शन देकर उनका कल्याण किया और बुराइयों का अंत किया।
भगवान राम ने वनवास से पहले भी यात्रा की और वह यात्रा की थी ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के साथ। इस दौरान कई लोगों का कल्याण करते हुए जब वे मिथिला प्रदेश में पहुंचे तो राजा जनक खुद को धन्य समझने लगे। उस वक्त मिथिला की राजधानी जनकपुर थी, जो कि अब हमारे पड़ौसी देश नेपाल में है। राजा जनक सीताजी के पिता थे। सीता माता का जन्मस्थल यह जनकपुर आज भी भारत और नेपाल की सीमा के नजदीक मौजूद है।
धनुष यज्ञ में दुनियाभर के राजा, महाराजा, राजकुमार तथा वीर पुरुषों को आमंत्रित किया गया था। समारोह देखने गए रामचंद्र और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्रजी के साथ वहीं उपस्थित थे। जब धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की बारी आई तो वहां उपस्थित किसी भी व्यक्ति से धनुष हिला तक नहीं। इस स्थिति को देख राजा जनक दु:खी हो गए और बोलने लगे कि क्या धरती वीरों से खाली है। राजा जनक के इस वचन को सुनकर लक्ष्मण के आग्रह और गुरु की आज्ञा पर रामचंद्र ने जैसे ही धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई वैसे ही धनुष तीन टुकड़ों में बंट गया। इसके बाद भगवान राम और जनक नंदिनी जानकी का विवाह माघ शीर्ष शुक्ल पंचमी को जनकपुर में हुआ। भगवान राम के साथ ही उनके भाइयों का विवाह भी सीताजी की बहनों के साथ ही हुआ।
कहते हैं कि त्रेता युग के समय के जनकपुर का लोप हो गया था। करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व महात्मा सूरकिशोर दास ने जानकी के जन्मस्थल का पता लगाया और मूर्ति स्थापना कर पूजा प्रारंभ की। यहां जानकी मंदिर है। सीताजी का स्वयंवर इसी मंदिर में हुआ था। पास ही एक मंदिर है राम-सीता विवाह मंडप, जिसमें राम और सीता का विवाह हुआ था। यह मंदिर नवलखा मंदिर के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर सन् 1910 में बना था, जिसकी लागत 9 लाख रुपए आई थी। यहां सूरकिशोरदास को 1657 में सीता की सोने की मूर्ति और उनकी फोटो मिली थी, उसी जगह पर ये मंदिर बनवाया गया है। अब जल्द ही जनकपुर में माता सीता की 151 फुट की प्रतिमा बनाई जाएगी। अमेरिका की संस्था मैथिली दिवा और नेपाल सरकार के सहयोग से बनाई जा रही इस प्रतिमा की लागत करीब 25 करोड़ रुपए आएगी।
जनकपुर नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में बसा है। इससे करीब 14 किलोमीटर के बाद पहाड़ शुरू हो जाता है। यहां जाने के लिए बिहार से तीन रास्ते हैं। पहला जयनगर से रेल मार्ग है, दूसरा सीतामढ़ी जिले के भिठ्ठामोड़ से और तीसरा मार्ग मधुबनी जिले के उमगांउ से बस का है। बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं सीतामढ़ी जिले से इस स्थान पर सड़क मार्ग से पहुंचना आसान है। पटना से इसका सीतामढ़ी होते हुए सीधा सड़क संपर्क है और इसकी दूरी 140 किलोमीटर है।
गौरतलब है कि जनकपुर क्षेत्र के रीति-रिवाज बिहार राज्य के मिथिलांचल जैसे ही हैं। भारतीयों के साथ ही अन्य देश के लोग भी बड़ी संख्या में यहां आते हैं। अधिकतर सैलानी भारतीय इलाके के मिथिला क्षेत्र से होते हुए नेपाल के मिथिला में प्रवेश कर माता सीता के जन्मस्थल पर दर्शन के लिए जाते हैं।