भगवान अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं और उन्हें हर प्रकार की मुश्किलों से बचाते हैं। सनातन धर्म में यह सब जानते हैं कि मानव कल्याण के लिए माता देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। इसके तुरंत बाद उनके पिता वसुदेव ने उन्हें यमुना नदी पार कर मथुरा से माता यशोदा के पास गोकुल भेज दिया। बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस सहित कई राक्षसों का अंत किया और अन्य कई लीलाएं रची। गोपियों के घर से कभी माखन चुराया तो कभी मटकी फोड़ी। गोकुल में माता यशोदा ने श्रीकृष्ण का लालन- पालन किया था। श्रीमद् भागवत के अनुसार मुक्तिदाता भगवान ने माता यशोदा पर जो कृपा की और प्यार लुटाया, वैसा न ब्रह्मा, न शंकर और न ही पत्नी लक्ष्मीजी को प्राप्त हुआ। इसके बावजूद माता यशोदा की एक इच्छा ऐसी थी, जो कान्हा ने उनके अगले जन्म में पूरी की।
भागवत गीता में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र जा रहे थे, उस समय वह माता यशोदा और नंदबाबा से मिले थे। भगवान श्रीकृष्ण को देखकर दोनों की आंखें छलक पड़ी। उस दौरान देवकी और यशोदा अपने कान्हा से खूब गले मिलीं और उन्होंने अपने सभी दु:ख भुला दिए। ऐसा लगा मानो उनमें नई ऊर्जा आ गई हो। इसके बाद एक बार और माता यशोदा से भगवान श्रीकृष्ण की मुलाकात हुई थी। इसके बाद श्रीकृष्ण माता यशोदा से मिलने तब पहुंचे, जब वह मृत्युशैया पर थीं और अंतिम सांसों में भी कृष्ण का नाम लिए जा रही थीं। जीवन के इन अंतिम पलों में उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि बेटा मुझे सिर्फ एक ही बात का पछतावा है कि मैं तुम्हारे किसी भी विवाह में शामिल नहीं हो पाई। तब श्रीकृष्ण ने कहा था कि मां तुम्हारी यह इच्छा मैं अवश्य पूरी करूंगा। इसके बाद श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को गोलोक भेज दिया था।
माता यशोदा का अगला जन्म माता वकुलादेवी के रूप में हुआ था। बाद में श्रीकृष्ण ने जब पद्मावती के साथ विवाह किया था, जिसमें वकुलादेवी शामिल हुई थीं। इस प्रकार यशोदा माता की इच्छा उनके अगले जन्म में भगवान श्रीकृष्ण ने पूरी की। इसी तरह एक बार श्रीकृष्ण को चोट लग गई थी, तब वकुलादेवी ने एक मां की तरह उनकी देखभाल की थी। यह भी उल्लेखनीय है कि वकुलादेवी ने ही भगवान विष्णु का नाम श्रीनिवासन रखा था।