भगवान शंकर जी भी हैं प्रभु श्रीराम के भक्त, ज्योतिषी के वेश में पहुंचे थे अयोध्या

सनातन धर्म में भगवान श्रीराम का जो स्थान हैं वह स्थान भगवान श्रीराम के नाम का भी हैं। शास्त्रों में राम और राम नाम के महत्व को हजारों बार प्रमाणित किया गया हैं। भगवान श्रीराम के नाम से भारी-भरकम पत्थर भी पानी में तैर जाते हैं। भगवान हनुमान ने प्रभु श्रीराम का नाम लेकर ही एक छलांग में समुद्र पार कर लिया था। शास्त्रों के अनुसार भगवान राम का नामकरण रघुवंशियों के गुरु महर्षि वशिष्ठ ने किया था। वशिष्ठ के अनुसार राम शब्द दो बीजाक्षरों अग्नि बीज और अमृत बीज से मिलकर बना हैं। ये अक्षर दिमाग, शरीर और आत्मा को शक्ति प्रदान करते हैं। तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में लिखा हैं कि प्रभु के जितने भी नाम प्रचलित हैं उनमें सर्वाधिक श्रीफल देने वाला नाम राम का ही हैं। राम नाम सबसे सरल और सुरक्षित हैं।

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भगवान श्रीराम के नाम का जाप उनके भक्त ही नहीं बल्कि भगवान श्रीराम के इष्ट भगवान शिव भी करते हैं। भगवान शिव ने स्वयं माता पार्वती को राम नाम के महत्व के बारे में बताया हैं। ग्रंथों में लिखा गया है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि भगवान विष्णु के सहस्रनामों का जाप किस उपाय से किया जा सकता है। इस पर भगवान शिव ने उन्हें बताया कि सिर्फ राम नाम का जाप ही भगवान विष्णु सहस्रनामों या 1000 बार ईश्वर के नाम का जाप करने के बराबर हैं। मैं स्वयं दिन-रात इसी नाम को मन ही मन जपता हूं।

जिस तरह भगवान श्रीराम भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं, उसी तरह भगवान शिव भी भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। उपास्य और उपासक में परस्पर इष्ट भाव का ऐसा संयोग इतिहास कहीं देखने को नहीं मिलता है। पौराणिक कथा हैं कि भगवान श्रीराम के बाल रूप के दर्शन करने के लिए भगवान शिव परम भागवत काकभुशुण्डि के साथ ज्योतिषी का रूप धारण करके अयोध्या पहुंचे थे। भगवान शिव के आगमन के साथ ही जल्द अयोध्या में यह बात फ़ैल गई कि एक बहुत ही प्रसिद्ध और अनुभवी ज्योतिषी नगर में आए हैं। जब यह बात माता कौशल्या को पता चली तो उन्होंने दासियों से कहकर भगवान शिव को सम्मान के साथ महल में बुलवाया। इसके बाद माता कौशल्या ने भगवान श्रीराम और उनके तीनों भाइयों को भगवान शिव में चरणों में रख कर प्रणाम करवाया और उनका भविष्य बताने का निवेदन किया।

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भगवान श्रीराम के बाल रूप को लेकर भगवान शिव आनंद से भर गए। उन्होंने माता कौशल्या के सामने विश्वामित्र की यज्ञ-रक्षा, सीता स्वयंवर, ताड़का वध, राक्षसों के विनाश एवं भक्तों के कल्याण सहित चारों भाइयों के सुयश का विस्तार से वर्णन किया।