वाल्मीकि रामायण में प्रसंग है कि जब माता सीता को खोजते हुए भगवान राम और भगवान लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे तो वानर राज सुग्रीव उन्हें देखकर डर जाते हैं। वह भागते हुए श्री हनुमान के पास गए और कहा कि तुम ब्रह्मचारी का रूप धारण करके उनके समक्ष जाओ और उनके हृदय की बात जानकर मुझे इशारे से बताओ। इसके बाद श्री हनुमान, भगवान राम और भगवान लक्ष्मण के समक्ष पहुंचे और उनसे पूछा कि, हे वीर! सांवले और गोरे शरीर वाले आप कौन हैं? आप क्षत्रिय के रूप में वन में विचरण क्यों कर रहे हैं? कोमल चरणों से चलने वाले आप किस कारण वन में विचरण कर रहे हैं? वन के सारे जीव-जंतु और वानर राज आपके आगमन से भयभीत हैं। कृपया आप अपने आगमन का कारण बताएं।
इस पर भगवान श्री राम अपने भाई लक्ष्मण को बताते हैं कि, ‘जिसे ऋग्वेद की शिक्षा नहीं मिली, जिसने यजुर्वेद का अभ्यास नहीं किया और जो सामवेद का विद्वान नहीं है, वह इस प्रकार सुन्दर भाषा में बातचीत नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होंने समूचे व्याकरण का कई बार स्वाध्याय किया है। बातचीत के समय उनके मुख, नेत्र, ललाट तथा अन्य सब अंगों से भी कोई दोष प्रकट हुआ हो ऐसा पता नहीं चलता। उन्होंने शब्दों को तोड़ मरोड़ कर किसी ऐसे वाक्य का उच्चारण नहीं किया जो सुनने में कटु हो। बोलते समय इनकी आवाज न तो बहुत ऊँची होती है, और न बहुत धीमी रहती है, मध्यम स्वर में चलती है।’
पहली मुलाकात में ही भगवान श्री राम ने भगवान हनुमान का इस तरह से अद्भुत वर्णन किया। इसके बाद जब भगवान राम ने भक्त हनुमान को अपना परिचय दिया तो हनुमान उनके चरणों में गिर पड़े और क्षमा मांगने लगे। वे तुरंत अपने रूप में प्रकट हुए। तब भगवान राम ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया और कहा – हे कपि! सुनो, मन में ग्लानि मत रखना। तुम मुझे लक्ष्मण से भी दूने प्रिय हो।