वो गुफा जहां महाराज सुग्रीव ने कई महीने बिताये, और प्रभु राम उनसे मिलने आये  

वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ने अपनी लीलाओं के माध्यम से अनेक प्राणियों का उद्धार किया। इसके अलावा ऐसे दानव जिन्होंने भगवान के वरदान का दुरुपयोग शुरू कर दिया था, उनका अंत भी किया। भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में इस धरती पर अवतार लेकर आए थे, इसलिए उन्होंने वनवास का कष्ट उठाया और फिर जगह- जगह घूम कर बुराइयों का अंत किया।

माता सीता का रावण द्वारा हरण कर लेने के बाद उनकी खोज में भटकते हुए श्रीराम और लक्ष्मणजी हनुमानजी की सहायता से सुग्रीव से मिले। सुग्रीव का संबंध किष्किंधा से है और सबसे बड़ी बात यह है कि सुग्रीव की गुफा आज भी मौजूद है। इस गुफा को सुग्रीव गुफा कहते हैं, जहां सुग्रीव अपने भाई बाली के डर से छिप कर रहते थे।

वास्तव में आज के पालकोट इलाके का प्राचीन नाम पंपापुर था। यह धार्मिक नगरी होने के साथ ही एक खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है। पालकोट पौराणिक, धार्मिक व ऐतिहासिक स्थानों का उम्दा उदाहरण है। यह गुफा आज भी रामायण युग की कहानी कहती है। अब यह गुफा काफी संकरी हो गई है, पर आज भी यह सुग्रीव गुफा के नाम से मशहूर है। यहां कई प्राचीन धरोहर और रामायण युग के अवशेष हैं। गुमला और सिमडेगा मार्ग में पड़ने के कारण यह इलाका

बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखंड राज्य का प्रमुख मिलाजुला ऐतिहासिक स्थान है। यह नागवंशी राजाओं का भी गढ़ था। इसके सबूत खंडहर बन चुके कई भवन और अवशेष हैं।

जब बाली ने सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया और उस पर हमला करना चाहा तो सुग्रीव ने अपने सहयोगियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर बनी इस गुफा में खुद को सुरक्षित कर लिया। इस गुफा को सुग्रीव गुफा कहा जाने लगा। समझा जाता है कि हनुमानजी के सहयोग से इसी गुफा में भगवान श्रीराम और सुग्रीव की मुलाकात हुई थी।

इस स्थान पर सुग्रीव अपने साथियों के साथ रहते थे, जो उनके समर्थक के रूप में सदैव उनके साथ खड़े रहे। इनमें महाबली हनुमानजी भी शामिल थे। आज भी इस पर्वत पर गुफा के समीप एक मंदिर बना है, जहां सूर्य देव और सुग्रीव की मूर्ति बनी हुई है। बाद में श्रीराम ने बाली का अंत करके, सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया।

सुग्रीव की गुफा ऋष्यमूक पर्वत में है। पर्वत के इस नाम को लेकर एक कथा शास्त्रों में आती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब रावण का अत्याचार बहुत बढ़ गया था तो बहुत से  ऋषि एक साथ एक पर्वत पर जाकर रहने लगे। कहते हैं ये सभी ऋषि यहां मौन होकर रावण का विरोध कर रहे थे। जब यह बात रावण को पता चली तो उसने इन सभी ऋषियों का अंत कर दिया। इन ऋषियों की संख्या इतनी अधिक थी कि उनकी हड्डियों से पूरा पहाड़ ढंक गया। उसके बाद यह पहाड़ ऋष्यमूक पर्वत कहलाया।