आजकल हम सब एक स्लोगन अक्सर सुनते रहते हैं. डर के आगे जीत है. ये सत्य भी है. और इस बात को सदियों पहले भगवान श्रीराम ने हर मनुष्य को सिखा दिया था. ये बात सच है कि इस संसार में मनुष्य होने के नाते हमें कभी किसी को कमतर नहीं समझना चाहिए. समय और स्थिति कभी भी बदल सकती है. पर ये भी सही है, यदि निडर होकर स्वाभिमान से जियें तो कभी ऐसी स्थिति आती ही नहीं है, जिसकी वजह से हमें डरना पड़े.
भगवान श्रीराम अपने जीवन में कभी किसी भी तरह की परिस्थिति से नहीं डरे, बल्कि आगे बढ़कर परिस्थिति का सम्मान किया. चाहे उन्हें अचानक से राजकुमार से वनवासी बनना पड़ा हो, चाहे सुख और वैभव छोड़कर कष्ट का जीवन जीना पड़ा हो, वो हर स्थिति में निडर ही रहे. और समय के साथ जो परिस्थितियां उनके विरुद्ध थीं, वो भी उन्हें अपनाती गईं. वैसे भी समय सबसे ज्यादा बलवान होता है, और बदलाव उसका स्वभाव है. कितने भी बड़े असुरों से उनका मुकाबला हो, समुद्र पर सेतु बनाना हो, सुग्रीव और विभीषण को दिए वचन निभाना हों, हर स्थिति में भगवान राम निश्चिन्त और निडर रहे. उनके चेहरे पर सदैव सुकून भरी मुस्कान रही, जिसे देखकर उनके साथ रहने वाले सब लोग चिंता और भय से मुक्त हो जाते थे.
ये उनका व्यक्तिव ही था, कि उनके सानिध्य में आकर छोटे से छोटा जीव या बड़े से बड़ा प्राणी उनके सामने नतमस्तक हो जाता था. अपने स्वभाव में क्रोध पर काबू रखना उनकी सबसे बड़ी विशेषता रही. उन्हें समस्याओं से ज्यादा परेशानी तब हो जाती जब वो किसी अपने को चिंताग्रस्त देखते थे. और उसे अपनी मधुर मुस्कान से तुरंत चिंता मुक्त कर देते थे. वैसे भी जिसके साथ स्वयं प्रभु राम हों, उन्हें इस जीवन में कैसा डर और किसकी चिंता, क्योंकि श्रीराम ही अस्तित्व हैं और वही निर्माण हैं.