रामायण में अयोध्या का इतना अद्भुत वर्णन किया है भगवान वाल्मीकि ने

भगवान राम की नगरी अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्तपुरियों में से एक माना जाता है। अयोध्या का इतिहास हमेशा से ही काफी वैभवशाली रहा है। खासकर रामायण काल में अयोध्या प्रचुर धन-धान्य से संपन्न, सुखी और समृद्ध शाली थी। भगवान श्री राम के पिता राजा दशरथ ने अयोध्या को इतना वैभवशाली और सम्पन्न बनाया था कि यहां दूर-दूर से लोग आकर बसते थे। जिस तरह इंद्र देव ने स्वर्ग में अमरावती पुरी बसाई थी और उसको इतना समृद्ध और बेहतर बनाया था। ठीक उसी तरह राजा दशरथ ने भी धर्म और न्याय के बल पर वैभवशाली अयोध्या का निर्माण किया।

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भगवान वाल्मीकि ने रामायण में अयोध्या की समृद्धता के बारे में लिखा है। उन्होंने लिखा है कि सरयू नदी के किनारे बसी कोसल नाम का जनपद प्रचूर धन धान्य से संपन्न सुखी और समृद्ध शाली है। इसमें अयोध्या नाम की नगरी का तीनों लोकों में विख्यात है। अयोध्या नगरी बारह योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी है। नगरी के चारों ओर फैली हुई सड़कों पर नित्‍य जल छिड़का जाता और फूल बिछाए जाते हैं। अयोध्या से बाहर जाने का मुख्य मार्ग अन्य मार्गों से अलग और विशाल है। मुख्य मार्ग के दोनों तरफ पेड़ों की कतारें लगी हुई हैं, जिससे यह अन्य मार्गों से अलग जान पड़ता है।

अयोध्या के उसके भीतर प्रथक-प्रथक बाजार है। विभिन्न देशों के व्यवसायी नगरी में आते हैं और व्यवसाय करते हैं। यहां ऊंचे-ऊंचे भवन बनाए हुए हैं जो इस नगरी की वैभवता को बढ़ाते हैं। भवनों पर सोने का पानी चढ़ाया हुआ है। यहां कई नाट्य समितियां हैं, जिनमें केवल स्त्रियां ही नृत्य एवं अभिनय करती हैं। नगरी में चारों ओर उद्यान तथा आमों के बगीचे हैं। नगरी की रक्षा के लिए चतुर शिल्‍पियों द्वारा बनाए हुए सब प्रकार के यंत्र और शस्‍त्र रखे हुए हैं। नगरी के चारों ओर गहरी खाई खुदी है जिसमें प्रवेश करना या उसे लांघना अत्यंत कठिन है। नगरी गाय, हाथी, घोड़े, बैल, ऊंट, खच्‍चर जैसे उपयोगी पशुओं से भी भरी पूरी हैं। यहां का पानी गन्ने के रस के सामान मीठा है। अयोध्या नगरी में रहने वाले सभी नागरिक धनवान हैं। कोई भी कम धनवान या गरीब नहीं हैं।

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रामायण के अनुसार सरयू नदी के तट पर बसे अयोध्या की स्थापना विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज ने की थी। भगवान ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि से कश्यप और कश्यप से विवस्वान का जन्म हुआ था। वैवस्वत मनु के 10 पुत्रों में से एक इक्ष्वाकु के कुल में ही आगे चलकर भगवान राम का जन्म हुआ. अयोध्या पर महाभारत काल तक इसी वंश के लोगों का शासन रहा।