भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि, ‘धरती पर जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब मैं अवतार लूंगा। धर्म की स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।‘ भगवान श्रीकृष्ण को भगवान श्रीविष्णु का अवतार माना जाता है। भगवान श्रीविष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए हर युग में अवतार लिया है। उनमें से श्रीविष्णु के 10 अवतार प्रमुख रूप से स्थान पाते हैं।
मत्स्य अवतार :- भगवान श्रीविष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्य अवतार लिया था। पुराणों के अनुसार भगवान श्रीविष्णु मत्स्य अवतार लेकर राजा के पास पहुंचे और राजा को कहा कि कुछ दिनों बाद प्रलय आने वाली है। आप सभी जीव-जंतुओं को एकत्रित कर लीजिए। प्रलय आने से पहले एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सभी उस नाव में बैठ जाना। मत्स्य अवतार के कहे अनुसार राजा ने वैसा ही किया। मान्यता है कि प्रलय आने के बाद मत्स्य अवतार ने ही उस नाव की रक्षा की थी।
कूर्म अवतार :- भगवान श्रीविष्णु के कूर्म अवतार के बिना समुद्र मंथन संभव नहीं था। पुराणों के अनुसार जब देवता और दैत्य मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाकर समुद्र मंथन करने लगे। तब मंदराचल पर्वत के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। ऐसे में भगवान श्रीविष्णु ने कूर्म अवतार धारण किया और समुद्र में जाकर स्वयं को मंदराचल पर्वत का आधार बना लिया। जिसके बाद समुद्र मंथन संभव हो पाया।
वराह अवतार :- हिरण्याक्ष नामक दैत्य का अंत करने के लिए भगवान श्रीविष्णु ने वराह अवतार लिया था। मान्यता है कि एक बार हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था। तब भगवान श्रीविष्णु के वराह अवतार पृथ्वी को खोजकर उसे वापस समुद्र से बाहर ले आए। इससे हिरण्याक्ष इतना क्रोधित हो गया कि उसने वराह अवतार को युद्ध के लिए ललकारा। इसके बाद वराह अवतार और हिरण्याक्ष के बीच भयंकर युद्ध हुआ और वराह अवतार ने उसका अंत कर दिया।
भगवान नृसिंह :- हिरण्याक्ष के अंत से उसका बड़ा भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुखी हो गया था। वह भगवान को अपना शत्रु मानने लगा था। उसने समस्त लोकों पर अपना कब्जा जमा लिया और अत्याचार करने लगा। ब्रह्माजी के वरदान के कारण देवताओं के लिए भी उसका अंत करना मुश्किल होता जा रहा था। ऐसे में भगवान श्रीविष्णु ने नृसिंह अवतार लिया और हिरण्यकशिपु का अंत किया।
वामन अवतार :- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार स्वर्ग पर दैत्यराज बलि ने अपना अधिकार जमा लिया था। तब भगवान श्रीविष्णु ने वामन अवतार लिया। एक बार दैत्यराज बलि यज्ञ कर रहा था। तभी भगवान वामन वहां पहुंचे और दैत्यराज बलि से तीन पग जमीन दान में मांगी। दैत्यराज बलि ने यह सोचकर उन्हें तीन पग जमीन दान देने का वचन दे दिया कि भला तीन पग में कितनी जमीन आएगी। इसके बाद भगवान वामन ने विशाल रूप धारण किया और एक पग से धरती और दूसरे पग से स्वर्ग नाप लिया। जब तीसरा पग रखने की जगह नहीं बची तो दैत्यराज बलि ने अपने सिर पर तीसरा पग रखने के लिए कहा। भगवान वामन ने जैसे ही उसके सिर पर पग रखा दैत्यराज बलि सुतललोक पहुंच गया।
परशुराम अवतार :- क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान श्रीविष्णु ने परशुराम अवतार लिया था। मान्यता है कि एक बार कार्तवीर्य ने भगवान परशुराम की अनुपस्थिति में उनका आश्रम उजाड़ दिया। इससे क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने कार्तवीर्य की सभी भुजाएं काट दी। इसके बाद बदला लेने के लिए कार्तवीर्य के संबंधियों ने भगवान परशुराम के पिता का अंत कर दिया। इससे भगवान परशुराम इतना क्रोधित हो गए कि उन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन कर दिया। हालांकि बाद में पितरों की आकाशवाणी सुनकर उन्होंने क्षत्रियों से युद्ध करना छोड़कर तपस्या की ओर ध्यान लगाया।
श्रीराम अवतार :- भगवान श्रीविष्णु ने त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का अंत करने के लिए श्रीराम अवतार लिया था। माता सीता के हरण के बाद भगवान श्रीराम लंका पहुंचे और रावण से युद्ध करके उसका अंत किया।
श्रीकृष्ण अवतार :- द्वापरयुग में अधर्म का नाश करने के लिए भगवान श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने अनेक राक्षसों का अंत किया। उन्होंने कंस का अंत किया। साथ ही महाभारत में अर्जुन के सारथी बनकर गीता जैसा महान उपदेश दिया।
कल्कि अवतार :- यह भगवान श्रीविष्णु का ऐसा अवतार है, जो अभी अवतरित नहीं हुआ है। शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु कलयुग में कल्कि के रूप में अवतार लेंगे। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। कल्कि अवतार कलयुग में अधर्म का विनाश करके धर्म की स्थापना करेंगे।