धार्मिक शास्त्रों में कहा गया है कि रावण का अंत भगवान श्रीराम के हाथों होना पहले से तय था। आनंद रामायण के अनुसार ब्रम्हा जी ने रावण को पहले ही बता दिया था कि राजा दशरथ और कौशल्या का पुत्र उसकी मौत का कारण बनेगा। साथ ही राजा अनरन्य ने भी रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु मेरे कुल के किसी व्यक्ति द्वारा ही होगी। सभी जानते हैं कि रावण को यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु किसी देवी-देवताओं के हाथों नहीं हो सकती है, इसलिए भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया और रावण का अंत किया। लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि रावण का अंत करने के लिए भगवान विष्णु को ही क्यों अवतार लेना पड़ा?
दरअसल किसी समय रावण और उसका भाई कुंभकर्ण भगवान विष्णु के द्वारपाल हुआ करते थें, लेकिन एक श्राप के कारण उनमें राक्षसी प्रवृत्ति उत्पन्न आ गई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार सनक, सानंदन, सनातन और सनतकुमार नाम के चार ऋषि भगवान विष्णु से मिलने के लिए आए, लेकिन भगवान विष्णु के द्वारपाल जय-विजय ने ऋषियों को अंदर प्रवेश देने से इंकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर ऋषियों ने जय-विजय को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। ऋषियों का क्रोध देख जय-विजय ने तुरंत उनसे क्षमा मांगी और श्राप वापस लेने की विनती की। भगवान विष्णु ने भी ऋषियों से जय-विजय को क्षमा करने का अनुरोध किया।
इस पर ऋषियों ने कहा कि श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन उसके प्रभाव को कम करने के लिए तुम्हे तीन बार राक्षस बनकर जन्म लेना होगा और तीनों ही जन्म में तुम्हारा अंत भगवान विष्णु या उनके अवतार के हाथों अनिवार्य है। अगर ऐसा होता है तो तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। ऋषियों की बात सुनकर जय-विजय ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की, जिस पर भगवान विष्णु ने उन्हें वचन दिया कि वह धरती पर अवतार लेकर उनका अंत करेंगे।
मान्यता है कि ऋषियों के श्राप के कारण जय-विजय ने हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष के रूप में जन्म लिया। वहीँ भगवान विष्णु ने भगवान वराह का अवतार लेकर हिरण्याक्ष का अंत किया और फिर भगवान नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का अंत किया। इसके बाद त्रेतायुग में जय-विजय का जन्म रावण व कुंभकर्ण के रूप में हुआ। जहां भगवान विष्णु ने प्रभु श्रीराम का अवतार लेकर दोनों का अंत किया। द्वापर युग में जय-विजय ने शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने द्वापर युग भगवान श्रीकृष्ण के अवतार में जन्म लिया और शिशुपाल व दंतवक्र का अंत कर जय-विजय को मुक्ति दिलाई।