राम दरबार में राम कथा कहते कहते लव कुश अपना वास्तविक परिचय देते हैं कि वे दोनों महाराज राम के पुत्र हैं और उन्हें पिता कहकर प्रणाम करते हैं।
यद्यपि सारी परिस्थितियां ये प्रमाणित कर रही हैं कि ये दोनों राम जी के ही पुत्र हैं तथापि राम जी कहते हैं- देवी सीता का चरित्र शुद्ध है उनमें किसी प्रकार का कोई पाप नहीं है फिर भी राज सिंहासन की उच्च मर्यादा स्थापित करने के लिए ये उचित है कि वे अपनी शुद्धता की शपथ लें जिससे यह लोकापवाद सदा के लिए समाप्त हो जाए और हम राज सिंहासन पर उन्हें सम्मान पूर्वक बिठा सकें।
माता कौशल्या सीता से दोबारा प्रमाण मांगे जाने पर राम से कहती हैं- ‘यदि मन में विश्वास नहीं है तो हजार अग्निपरीक्षाओं या हजार शपथों का कोई अर्थ नहीं और अगर विश्वास है तो किसी परीक्षा और शपथ की आवश्यकता ही नहीं। तू इतना कठोर क्यों है राम??’
राम जी का उत्तर सुनिए- मन में सीता की पवित्रता और अनन्य प्रेम पर पूर्ण विश्वास होते हुए भी उसी की भांति सन्यासी का जीवन बिता सकता हूं परंतु प्रजा में एक भी अपवाद जब तक बाकी है उसका हाथ पकड़कर उसे राज सिंहासन पर नहीं बिठा सकता। इसीलिए मैंने वह निर्णय लिया कि यदि सीता प्रजा के सामने सभा में अपनी शुद्धता की शपथ ग्रहण कर लें तो फिर प्रजा में कोई विरोधी आवाज नहीं रह जाएगी।
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अगले दिन राज दरबार में महाराज राम, गुरुजनों, माताओं और प्रजा जनों के समक्ष सीता जी उपस्थित होती हैं।
महर्षि बाल्मीकि उनकी शुद्धता और सतीत्व का प्रमाण देते हैं और सीता जी भी अपने सतीत्व का प्रमाण देकर कुश और लव को राम जी के हाथों सौंप कर स्वयं धरती माता की गोद में समा जाती हैं।
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राम जी ने एक आदर्श राजा का कर्तव्य निभाते हुए अपने व्यक्तिगत सुख, अपनी व्यक्तिगत कामनाओं भावनाओं को कभी ऊपर आने नहीं दिया। सीता जी ने एक आदर्श पत्नी का कर्तव्य निभाते हुए अपने पति पर किसी तरह का कोई आरोप-प्रत्यारोप या लांछन नहीं लगने दिया।
नारी के कर्तव्य, नारी की महिमा और गरिमा को एक नई परिभाषा देकर भूमि से भूमि पर आई जनक नंदिनी सीता फिर से भूमि में समा गई।
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समय अपनी गति से बीतता रहा। रामजी ने सभी राजकुमारों के लिए उचित राज्यों की व्यवस्था करके उन्हें अलग-अलग राज्यों का राजा बनाया।
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काल का राम जी के साथ गुप्त वार्ता करना, ऋषि दुर्वासा का उसी समय राम जी से मिलने का हठ करना, लक्ष्मण जी द्वारा राम जी की आज्ञा का उल्लंघन करके काल और राम जी की वार्ता में उपस्थित हो जाना और काल को दिए गए वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड देने का विधान बनना।
एक बार फिर विकट धर्मसंकट राम जी के सामने उपस्थित हो जाता है। ऐसे में हनुमान जी के परामर्श और गुरुदेव की आज्ञा से राम जी लक्ष्मण जी का त्याग कर देते हैं।
शास्त्रों में कहा गया है-‘सम्मानित और आत्मीय का त्याग कर देना भी उसे प्राण दंड देने के बराबर है’
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Jai Shriram 🙏
Gepostet von Arun Govil am Freitag, 29. Mai 2020
तीनों माताएं पहले ही समय के साथ काल कवलित हो चुकी हैं लक्ष्मण जी ने भी त्याग के बाद सरयू जी में जल समाधि लेकर भूलोक छोड़ दिया और क्षीर सागर में शेषनाग के रूप में जाकर स्थित हो गए।
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लक्ष्मण जी के प्राण त्याग देने के बाद रामजी ने भी धरती से अपनी लीला समाप्त करने का निर्णय लिया और गुरु वशिष्ठ की आज्ञा लेकर महाप्रस्थान की योजना बनाई।
राम जी के साथ महाप्रस्थान में देवलोक से आए अनेकानेक देवता जो अयोध्या वासियों के रूप में, वानरों के रूप में, रीछ और भालू के रूप में धरती पर आये थे वे सब राम जी के साथ अपने-अपने लोकों में जाने के लिए अयोध्या में सरयू नदी के गोप्रतार घाट पर उपस्थित हुए।
गगन में स्थित ब्रह्मा जी इन्द्रादि सभी देवताओं की उपस्थिति में वैदिक मंत्रोचार के साथ राम जी ने मानव शरीर को त्याग कर अपने दिव्य चतुर्भुज स्वरूप को धारण किया, भरत और शत्रुघ्न उन्हीं का अंश होने के कारण उसी चतुर्भुज रूप में समाहित हो गए और भगवान गरुड़ पर सवार होकर वैकुंठ की ओर प्रस्थान कर गए।
पूर्ण यहाँ के कर के काम राजाराम गए निज धाम।। परंतु हमें यह नहीं समझना चाहिए कि ये राम की लीला का समापन है।
जब जब जग में आयेगा रावण तब तब आएँगे नारायण।।
धरती ही नहीं बल्कि सारे ब्रम्हांड के लिए राम जी एक आदर्श प्रस्तुत करके अपनी मानव लीला का समापन करके यथावत बैकुंठ धाम में स्थित हुए। इसी के साथ एक कल्प की रामलीला और एक बार के रामायण के प्रसारण का आज समापन हुआ। परन्तु–हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुविधि सब संता।
प्रभु श्री राम का चरित्र, उनके आचार विचार, उनके व्यवहार और उनके आदर्श संपूर्ण मानव जाति के लिए प्रेरणा बनें और प्रभु श्रीराम का नाम सारे संसार के कष्टों को दूर करे यही मंगल कामना।
जय श्री राम