लव कुश – महल के अधिकारी जंगल में

वाल्मीकि आश्रम में रघुकुल के दोनों राजकुमार, मुनिकुमारों की तरह धीरे-धीरे बड़े हो रहे हैं और महारानी सीता, वनदेवी बनी हुई एक तपस्विनी की तरह उनका लालन-पालन कर रही हैं।

बचपन सारे जीवन की नींव जैसा होता है। जो संस्कार और आदतें इस समय पड़ जाती हैं उनका प्रभाव जीवन भर रहता है। सदाचार और कर्मठता के साथ-साथ सीता जी अपने दोनों कुमारों को अपने हाथ से धनुष बना कर देती हैं और उन्हें तीर चलाना निशाना लगाना भी सिखाती हैं। गुरुदेव वाल्मीकि भी दोनों कुमारों को बाल्यकाल से ही धनुर्विद्या का विधिवत प्रशिक्षण देते हैं।

*ध्यान देने वाली बात ये है कि जीवन के लिए संस्कार जितने आवश्यक हैं हथियार भी उतने ही आवश्यक हैं। आज हम सनातन धर्मियों ने अपनी इस सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता और संस्कार को भुला रखा है। धरती पापियों और अधर्मियों से कभी भी खाली नहीं रही, ना त्रेतायुग में थी ना आज है।

अपनी सुरक्षा का उपाय हमने स्वयं नहीं किया तो अपने विनाश का कारण हम स्वयं होंगे।
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Jai Shriram 🙏

Gepostet von Arun Govil am Mittwoch, 3. Juni 2020

 

कुश लव थोड़े बड़े हो जाने पर माता के साथ आश्रम के कामों में हाथ बटाते हुए जंगल से लकड़ियां काटने जाते हैं और इसी बीच लव एक हरे पेड़ पर कुल्हाड़ी मार देते हैं तो सीता मैया उन्हें समझाते हुए कहती हैं- बेटा जैसे हम में जीवन है ऐसे ही इन पेड़ पौधों में भी जीवन होता है इसलिए हरे पेड़ों को बिल्कुल नहीं काटना चाहिए। जैसे हम सब धरती माता की संतान हैं वैसे ही ये पेड़ पौधे भी धरती माता की ही संतान हैं। इसलिए इन्हें बड़े भैया कहकर उनसे क्षमा मांगो।’

ऐसे हैं हमारे सनातन संस्कार जिनमें बचपन से ही पर्यावरण और जीव जीव के प्रति प्रेम और आदर भाव की शिक्षा दी जाती रही है।
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प्रतिदिन सवेरे उठना, स्नान करना, बड़ों को प्रणाम करना, नियमित संध्या वंदन करना, व्यायाम करना और उसके बाद शास्त्र और शस्त्रों का अभ्यास करना। सीता जी द्वारा निर्धारित ये दिनचर्या है कुश और लव की।

ये दिनचर्या हमें भी निभानी चाहिए। बड़ों को प्रणाम करना, व्यायाम और योग करना,अच्छा साहित्य पढ़ना और अपनी सुरक्षा के उपाय करना।
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उचित समय देखकर महर्षि वाल्मीकि ने कुश और लव का यज्ञोपवीत संस्कार किया। यज्ञोपवीत मात्र एक धार्मिक संस्कार ही नहीं बल्कि एक नितांत शारीरिक आवश्यकता भी है। इस विशेष रूप से बने धागे को धारण करने के धार्मिक लाभ अपनी जगह हैं परंतु इसके बहुत सारे शारीरिक लाभ भी हैं जिनको जानने समझने की आवश्यकता है।
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लव कुश को सर्वोच्च शिक्षा देने के क्रम में महर्षि वाल्मीकि अपने मानस में संजोया हुआ बहुत ही महत्वपूर्ण और गूढ़ ज्ञान लव कुश को समाधिस्थ करके मन से मन को जोड़ करके प्रदान करते हैं। जिससे महर्षि वाल्मीकि के मस्तिष्क में अर्जित एकत्रित ज्ञान, कुश और लव के मस्तिष्क में स्थापित हो जाता है। आज की भाषा में सरलता से समझने के लिए इसे हम डाटा ट्रांसफर कह सकते हैं।
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अस्त्र शस्त्र और शास्त्रों के साथ साथ महर्षि वाल्मीकि ने कुश और लव को संगीत की शिक्षा देकर उन्हें रामकथा का गायन सिखा दिया।