महाभारत के युद्ध की वो वीरांगना, जिसका एकमात्र पुत्र ही बना पांडवों का वारिस

वो धरती के इतिहास के अब तक का सबसे बड़ा युद्ध था. उस युद्ध में दुनिया के बड़े बड़े योद्धा शामिल हुए थे. कहते हैं महाभारत से बड़ा युद्ध इस धरती पर आज तक नहीं हुआ. इस युद्ध की कुछ कहानियां तो ऐसी हैं, जिनकी कोई मिसाल नहीं. उनमें से ही एक कहानी है 14-15 साल की उम्र की एक लड़की की, जिसकी उसी उम्र में शादी हो गई. और महाभारत के युद्ध के बाद केवल उसके गर्भ से जन्मा बालक ही पांडवों का वारिस बना. बाकी सभी योद्धाओं का उस युद्ध में अंत हो गया था. पांडवों के सभी पुत्र भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे. केवल पांच पांडव और उनका एक मात्र पोता जिसका जन्म युद्ध के बाद हुआ, वही उस राज्य का उत्तराधिकारी बना. और इस लड़की का नाम था राजकुमारी उत्तरा. जिसके पति अभिमन्यु ने युद्ध का रुख मोड़ दिया था. हालांकि उसका अंत हो गया था. पर जाते जाते भी उसने ये साबित कर दिया, कि क्षत्रिय केवल रणभूमि की शान होते हैं.

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उत्तरा मत्स्य राज्य की राजकुमारी थी, उसने कुरुक्षेत्र युद्ध के कुछ दिनों पहले अर्जुन के बेटे अभिमन्यु से शादी की थी. युद्ध के पहले ही दिन उसने अपने भाई उत्तर को खो दिया. 13 वें दिन, उसने अपने पति को सबसे दुखद तरीके से खो दिया. युद्ध के समय वह गर्भवती थी, अश्वत्थामा की बदौलत उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की मृत्यु हो गई, बाद में भगवान कृष्ण ने बच्चे को बचाया और उसका नाम परीक्षित रखा, जो बाद में युधिष्ठिर का उत्तराधिकारी बना. उत्तरा ने वैवाहिक जीवन ज्यादा समय तक नहीं जिया. वह रानी भी नहीं बनी, उसने युद्ध के दौरान अपने परिवार के लगभग सभी सदस्यों को खो दिया. लेकिन फिर भी वीरांगना थी. उन्होंने और पति और परिवार के सदस्यों के अंत के बाद भी एक क्षत्राणी की तरह अपने अस्तित्व के होने का आभास हमेशा जिंदा रखा. लेकिन इस सब के बावजूद, उसे उतना याद नहीं किया जाता, जितना लोग द्रौपदी, कुंती और गांधारी को याद करते हैं.