अपने प्रिय घोड़े चेतक पर सवार होकर दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए महाराणा प्रताप ने

महान हिन्दू सम्राट महाराणा प्रताप सिंह उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे. उनका नाम इतिहास में वीरता और और उनके द्वारा लिए गए प्रण के लिये सदैव अमर रहेगा. उन्होंने कई सालों तक ना केवल मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया. बल्कि कई बार मुगलों को युद्ध में भी हराया. सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में से एक महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे, जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे. उनका निधन 29 जनवरी, 1597 में हुआ था.

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महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में 9 मई, 1540 ई. को हुआ था. युद्ध कला का कौशल उन्होंने अपनी माँ से ही सीखा था. वैसे तो उन्होने अपने जीवन काल में कई लड़ाइयाँ लड़ीं, पर मुगल बादशाह अकबर के साथ हुआ हल्दीघाटी का युद्ध काफी चर्चित है. इस युद्ध में दोनों सेनाओं का काफी बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था. और कई योद्धाओं का अंत हो गया था. इतिहास में ये युद्ध भी महाभारत की तरह विशाल माना जाता है. कहा जाता है इस युद्ध में ना तो अकबर जीत सका और ना महाराणा प्रताप हारे. अकबर के पास जहाँ विशाल सेना थी तो महाराणा प्रताप के पास वो हौसला था जो किसी भी बड़ी सेना का मनोबल तोड़ सकता था. हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर के पास 85000 सैनिक. इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और राजपुताना आन बान की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे. यहाँ तक कि, अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 6 शान्ति दूतों को भेजा था, जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से समाप्त किया जा सके, लेकिन महाराणा प्रताप हर बार उनका प्रस्ताव इसलिए ठुकरा दिया, क्योंकि वह अपने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं करते थे.

महान राजपूत योद्धा महाराणा प्रताप अपने साथ 208 किलो वाजं लेकर चलते थे. महाराणा प्रताप के पास वैसे तो कई घोड़े थे, लेकिन उनका सबसे प्रिय घोड़ा चेतक था. महाराणा प्रताप की तरह ही उनका घोड़ा चेतक भी काफी बहादुर था. बताया जाता है जब युद्ध के दौरान मुगल सेना उनके पीछे पड़ी थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट लंबे नाले को पार किया था. आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक का स्मारक बना हुआ है.