महारानी कैकेई ने एक रात में बदल दिया था, श्रीराम के साथ कई लोगों का भाग्य

रामायण में एक चौपाई है,

होइहि सोइ जो राम रचि राखा
को करि तर्क बढ़ावै साखा।।

यानि होना वही है जो श्रीराम ने रच रखा है. ये बात अटल सत्य है. पर विधि ने तो श्रीराम के लिए भी बहुत कुछ तय करके रखा था.

अयोध्या में भगवान् राम के राज्याभिषेक की प्रक्रिया शुरू हो गई थी, चारों तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ थी, नगर सजा हुआ था, राज परिवार में उत्सव जैसा माहौल था पर वहीँ राजमहल के एक भवन में श्रीराम का भाग्य बदलने का षड्यंत्र चल रहा था. श्रीराम के पिता और अयोध्या के महाराजा दशरथ की मंझली रानी कैकेई, अपनी दासी मंथरा की बातों में पूरी तरह फंस चुकीं थीं और उन्होंने तय कर लिया था कि महाराज दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए राज सिंहासन और श्रीराम के लिए 14 वर्ष का वनवास माँगना है.

वो कुपित होकर कोपभवन में जाकर बैठ गईं और फिर उन्होंने वही किया। महाराज दशरथ ने उनसे बहुत निवेदन किया कि चाहें तो उनके प्राण ले लें लेकिन उनके कलेजे के टुकड़े को वनवास ना भेजें पर यही तो कैकेई की ज़िद थी, उन्हें यही करना था, क्योंकि मंथरा ने उन्हें पूरी तरह भ्रमित कर दिया था. और वही हुआ, श्रीराम का वनवास तय हो गया और राजा बनने जा रहे प्रभु राम अगले ही दिन मुनि वेश धारण करके वनवास के लिए प्रस्थान कर गए.

ये तो रामायण की मुख्य घटना है मगर कहते हैं न कि एक इंसान से कई लोगों का भाग्य जुड़ा होता है तो यहाँ केवल श्रीराम का भाग्य नहीं बदला था बल्कि उनके साथ उनकी पत्नी सीताजी, भाई लक्ष्मण, महाराज दशरथ, माता कौशल्या, लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला, श्रीराम के अनुज भरत और उनकी पत्नी, और स्वयं महारानी कैकेई, इन सबका भाग्य बदल चुका था.

केवल इतना ही नहीं, इनकी ही वजह से महाराज सुग्रीव, बाली, लंकापति रावण और उसके पूरे कुटुंब का भी भाग्य बदल चुका था. या फिर ये कह सकते हैं कि, पूरी नियति बदल चुकी थी. यही विधि का विधान था. एक महान अध्याय की शुरुआत हो चुकी थी और श्रीराम के जीवन के ये अध्याय आगे जाकर पूरी मानवजाति का मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हो रहे थे। यदि इस दृष्टिकोण से देखा जाये तो इस समूचे घटनाक्रम में मंथरा और महारानी कैकेई का बहुत बड़ा योगदान था क्योंकि यही होना था और यही श्रीराम ने पहले से रचा हुआ था.