वेद का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान जो सृष्टि के आदिकारण परमपिता परमेश्वर द्वारा प्रकट किया गया है। विद्या, विद्वान, विदित आदि शब्द इसी वेद शब्द से उत्पन्न हुए हैं। वेद संख्या में चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।ImageSource
वेदों की विषय वस्तु अपौरुषेय कही जाती है जिसका अर्थ है कि वेद मनुष्यों द्वारा नहीं रचे जा सकते, ये परमेश्वर द्वारा ही रचे गए हैं और कृपा करके विद्वानों के माध्यम से जीवों को प्रदान किए गए हैं।
विराट पुरुष अर्थात परमेश्वर द्वारा यह ज्ञान सबसे पहले ब्रह्मा जी को मिला। पौराणिक मान्यता यह भी है कि परमपिता ने अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नाम के इन चार महर्षियों को क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान प्रदान किया। उसके बाद यह गूढ़ ज्ञान गुरुओं से सुनकर ही आगे की पीढ़ियों तक बढ़ा इसलिए इसे ‘श्रुति’ भी कहते हैं।
वेद मंत्रों की व्याख्या के लिए कालांतर में कई ग्रंथ रचे गए जिनमें- ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक और उपनिषद आते हैं। इन ग्रंथों की भाषा वैदिक संस्कृत है जो वर्तमान में प्रचलित लौकिक संस्कृत से अलग है।वेदों को सरलता से पढ़ने और समझने के लिए विद्वानों ने वेद के छः अंगों का निरूपण किया है-
शिक्षा :- वेद अध्ययन में ध्वनियों का उच्चारण कैसे किया जाए इसका विधि-विधान वर्णित है।
निरुक्त :- शब्दों के गूढ़ अर्थ अथवा मूल भाव को समझने का विधान।
व्याकरण :- संधि, समास, उपमा, विभक्ति आदि का वर्णन।
छंद :- मंत्रों के गायन या शुद्ध उच्चारण के लिए आघात और लय निर्धारित करने का विधि विधान वर्णित है।
कल्प :- वेद के इस अंग में यज्ञ करने से संबंधित नियम हैं। इसके अंतर्गत- श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र आदि का वर्णन है।
ज्योतिष :- समय और उसकी गति का ज्ञान साथ ही इस ज्ञान की उपयोगिता। आकाशीय पिंडों जैसे- सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, ग्रह, नक्षत्र आदि की गति और स्थिति के अध्ययन का वर्णन है।
साथ ही वेद के उपांगों का वर्णन है जिनमें छह शास्त्र और दस उपनिषद हैं। शास्त्रों के नाम हैं- 1-पूर्वमीमांस, 2-वैशेषिक, 3- न्याय, 4- योग, 5- सांख्य और 6- वेदांत।ImageSource
उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैतिरेय, छांदोग्य और बृहदारण्यक।(मान्यताओं में 108 उपनिषद हैं) इस प्रकार ये हुए- वेद, वेदांग और उपांग। प्राचीन काल में वशिष्ठ, शक्ति, पराशर, वेदव्यास, जैमिनी, याज्ञवल्क्य, कात्यायन आदि ऋषियों को वेद का प्रकांड ज्ञाता माना जाता था।
वेदों में किसी भी मत, संप्रदाय या पंथ का उल्लेख नहीं है, वेदों का ज्ञान पूरी तरह से वैज्ञानिक है और संपूर्ण मानवता के लिए परम उपयोगी है ।
महर्षि दयानंद सरस्वती वेदों का समय- 01,96,08,52,976 (एक अरब, छियानबे करोड़, आठ लाख, बावन हजार, नौ सौ छिहत्तर) वर्ष पहले का मानते हैं।
तक्षशिला (रावलपिंडी पाकिस्तान), नालंदा (बिहार शरीफ) और विक्रमशिला (भागलपुर बिहार) ये प्राचीन भारतवर्ष के विश्वविद्यालय हुआ करते थे जहां वेदों की शिक्षा के लिए पूरे विश्व से विद्यार्थी आते थे।
वेद हमें ब्रह्मांड के अलौकिक, आश्चर्यजनक, अभेद्य रहस्य बताते हैं जो साधारण ज्ञान विज्ञान द्वारा संभव नहीं है यूनेस्को ने 7 नवंबर 2003 को वेद और वेद पाठ को मानवता की श्रेष्ठ कृति घोषित किया है।ImageSource
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार प्रारंभ में एक ही वेद था- यजुर्वेद। गरुड़ पुराण में उल्लेख है- ‘एकैवासीद् यजुर्वेद, चतुर्धा: व्यभजत् पुनः।’ अर्थात एक ही यजुर्वेद था जो चार भागों में विभक्त हुआ और ‘चतुर्वेद’ कहलाया। साथ ही पौराणिक मान्यता यह भी है कि द्वापर युग तक तीन ही वेद थे – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और इन्हें ‘वेदत्रयी’ कहा जाता था।
इनमें-
ऋग्वेद – वेद का पद्यात्मक भाग,
यजुर्वेद – वेद का गद्यात्मक भाग,
सामवेद -वेद का गेय (गायन) भाग,
द्वापर युग में अथर्व को भी वेद की संज्ञा देकर ‘वेदत्रयी’ के स्थान पर ‘चतुर्वेद’ हो गए और इस युग की समाप्ति के समय वेदव्यास जी ने वेद के चारों भागों को लिपिबद्ध किया और अपने चार शिष्यों-
पिप्लाद को ऋग्वेद,
वैशंपायन को यजुर्वेद,
जैमिनी को सामवेद और
सुमन्त को अथर्ववेद की शिक्षा दी।
महर्षि पतंजलि द्वारा रचित महाभाष्य के अनुसार-
ऋग्वेद की 21,
यजुर्वेद की 101,
सामवेद की 1001 और अथर्ववेद की 09 शाखाएं हैं।
इस प्रकार चारों वेदों की कुल 1132 शाखाएं हैं परंतु दुर्भाग्य से वर्तमान में मात्र 12 शाखाओं के ही मूल ग्रंथ उपलब्ध हैं।
महर्षि कात्यायन द्वारा चारों वेदों के चार उपवेद भी निर्धारित किए गए हैं जिनके नाम हैं-
01- स्थापत्य वेद – इसमें वास्तु शास्त्र और वास्तुकला का वर्णन है।
02- धनुर्वेद – इसमें युद्ध कला का वर्णन है।
03- गंधर्व वेद – इसमें गीत, गायन, संगीत कला का वर्णन है।
04 – आयुर्वेद – इसमें स्वास्थ्य विज्ञान का विस्तृत वर्णन है।ImageSource
वेदों में प्रयुक्त प्रमुख छंद हैं-
गायत्री – आठ मात्राओं के तीन चरण (24 मात्रा)
त्रिष्टुप – ग्यारह मात्राओं के चार चरण (44 मात्रा)
अनुष्टुप – आठ मात्राओं के चार चरण (32 मात्रा)
जगती – आठ मात्राओं के छ पद (48 मात्रा)
बृहती – आठ मात्राओं के चार चरण (32 मात्रा)
पंक्ति – चार या पांच चरण, कुल 40 मात्रा (इस छंद के कई भेद हैं)
उष्णिक – कुल मात्राएं 28, तीन चरण जिनमें पहले दो चरण में आठ आठ मात्राएं और तीसरे बाद में 12 मात्राएं।
वेद ज्ञान का वह अथाह सागर है जिसका अंशमात्र भी यदि व्यवहार में लाया जाने लगे तो पूरे विश्व का कल्याण निश्चित है।