रामायण एक ऐसी कथा है, जिसकी महिमा जीवन को हर कदम पर मार्गदर्शन देती है. इसके हर चरित्र से मनुष्य को कुछ कुछ न सीख मिलती है. कई घटनाओं से भरी हुई इस कहानी में इतने पात्र हैं, जिनकी जीवन यात्रा का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य था. साक्षात नारायण ने मानव रूप में जन्म लेकर स्वयं ही इस बात का संकेत दे दिया था, कि कुछ न कुछ ऐसा होने वाला है जिससे युगों की दशा बदल जायेगी. रामायण में अनेक पात्रों का वर्णन किया गया है जिसमें एक नाम मंथरा का भी आता है वैसे तो यह एक कलंकित चरित्र है, और अच्छा नहीं माना जाता लेकिन यही एक ऐसा पात्र है जिसके बिना पूरी रामायण अधूरी है और इसके बिना पूरी रामायण का अस्तिव नजर नहीं आता है.
रामायण में इसका जिक्र राज्यभिषेक के समय में ही आता है. वैसे भी रामायण भगवान राम की कथा है. अब प्रश्न उठता है कि मंथरा कौन थी, और वो आयी कहाँ से थी, क्यों उसने राम को राजा बनने से रोका? क्या उसके द्वारा ऐसा करना कोई मज़बूरी थी या उससे ऐसा करने के लिए किसी के द्वारा कहा गया था? क्यों इस तरह तिरस्कृत जीवन जीने के लिए मज़बूर हुई? अगर इस सम्बन्ध में वाल्मीकि रामायण की माने तो मंथरा एक गंधर्व कन्या (अप्सरा) थी जिसे इंद्र ने राम जी को वनवास हो इसके लिए ही पहले से ही कैकयी के पास भेज दिया था.
हालांकि वो कहाँ से आई थी किसी को ज्यादा नहीं पता, उसी के चलते कैकयी की माँ भी अपने पति से विद्रोह करती थी और पति ने उसे महल से बाहर कहीं भेज दिया था. लेकिन जब कैकई का महाराज दशरथ से विवाह हुआ तो मंथरा उनके साथ ही अयोध्या आ गई. मंथरा को ये दायित्व दिया गया कि, हमेशा कैकई का ध्यान रखना है, और उनका भला ही सोचना है. लेकिन आगे चलकर इसी मंथरा ने महारानी कैकई की बुद्धि भ्रष्ट कर दी, और उन्होंने, महाराज दशरथ से अपने लिए वचन के रूप में अपने पुत्र भरत के लिए राज्यभिषेक और श्रीराम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया. और उसके बाद महलों के राजकुमार भगवान श्रीराम और लक्ष्मण का नसीब ही बदल गया. और आगे जो भी हुआ प्रभु राम की वह लीला पूरे संसार ने देखी. लेकिन जो कुछ भी हुआ वो विधाता ने पहले से तय कर रखा था.