अपने नौ रूपों में माता दुर्गा हैं शक्ति का प्रतीक

सनातन धर्म में माता दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना गया है। प्रतिवर्ष नवरात्री ने नौ दिनों तक माता दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। माता दुर्गा के सभी नौ रूपों का अलग-अलग महत्व है।

शैलपुत्री :- माता दुर्गा के प्रथम स्वरूप को माता शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के लिए कारण ही इन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। माता शैलपुत्री ने दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल धारण किया हुआ है।

ब्रह्मचारिणी : – माता ब्रह्मचारिणी के नाम का अर्थ है तप का आचरण करने वाली। भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए माता ब्रह्मचारिणी ने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या की थी। माता ब्रह्मचारिणी ने बाई भुजा में कमण्डल और दाई भुजा में जप की माला धारण की हुई है। मान्यता है कि ब्रह्मचारिणी माता की पूजा करने से जीवन में शांति और मन एकाग्र रहता है।

चंद्रघंटा :- माता दुर्गा के चंद्रघंटा रूप की पूजा करने का विशेष महत्व है। माता चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है। इसलिए इनकी चंद्रघंटा के नाम से पूजा की जाती है। सिंह पर सवार माता चंद्रघंटा ने अपनी भुजाओं में कई तरह के अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं। मान्यता है कि चंद्रघंटा माता की पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

कुष्मांडा :- ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण ही माता दुर्गा के चौथे स्वरूप को माता कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है। सिंह पर सवार माता कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। इन आठ भुजाओं में माता कुष्मांडा ने चक्र, गदा, धनुष, कमण्डल, कलश, बाण, कमल और माला को धारण किया हुआ है। मान्यता है कि कुष्मांडा माता की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

स्कंदमाता :- छह मुख वाले भगवान स्कन्द ‘कुमार कार्तिकेय’ की माता होने के कारण ही इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। चार भुजाओं वाली स्कंदमाता ने अपनी एक भुजा में कमल और दूसरी में श्वेत कमल है। तीसरी भुजा से माता ने अपने पुत्र को पकड़ रखा है जबकि चौथी भुजा वरदमुद्रा में हैं। मान्यता है कि स्कंदमाता माता की पूजा करने से सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।

कात्यायनी :- विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर माता दुर्गा ने उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। चार भुजाओं वाली माता कात्यायनी की एक भुजा अभयमुद्रा में जबकि दूसरी भुजा वर मुद्रा में है। माता ने अपनी तीसरी भुजा में कमल जबकि चौथी में तलवार को धारण किया हुआ है। मान्यता है कि कात्यायनी माता की पूजा करने से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कालरात्रि :- माता दुर्गा के सातवें रूप को माता कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। माता दुर्गा का यह रूप भयानक लेकिन शुभ फल देने वाला है। इनका वर्ण एकदम काला और बाल बिखरे हुए हैं। गर्दभ की सवारी करने वाली माता कालरात्रि की एक भुजा अभयमुद्रा में जबकि दूसरी भुजा वरमुद्रा में है। साथ ही तीसरी भुजा में तलवार जबकि चौथी में भुजा में लौह अस्त्र है। मान्यता है कि कालरात्रि माता की पूजा करने से शत्रु हमसे दूर रहते हैं।

महागौरी :- माता महागौरी का वर्ण सफ़ेद है और इन्होने सफ़ेद वस्त्रों व आभूषणों को धारण किया हुआ है। बैल की सवारी करने वाली माता महागौरी की एक भुजा अभयमुद्रा में जबकि दूसरी भुजा वरमुद्रा में है। वहीं तीसरी भुजा में माता ने त्रिशूल जब चौथी में डमरू धारण किया हुआ है। मान्यता है कि महागौरी माता की पूजा करने से सुहाग सुरक्षित रहता हैं।

सिद्धिदात्री :- माता दुर्गा के नौवें स्वरूप को सिद्धिदात्री माता के नाम से जाना जाता है। अपने नाम के अनुसार सिद्धिदात्री माता सिद्धि देने वाली है। कमल पुष्प पर विराजमान माता सिद्धिदात्री ने अपनी भुजाओं में चक्र, गदा, कमल का फूल और शंख धारण किया हुआ है। मान्यता है कि सिद्धिदात्री माता की पूजा करने से सभी काम आसानी से हो जाते हैं।