धरती के गर्भ से निकली कन्या जो बनी समस्त स्त्रियों के लिए महान आदर्श

रामायण विश्व का सबसे प्राचीन और प्रथम महाकाव्य है. जिसे महर्षि वाल्मीकि ने छंद बद्ध किया है. यह महाकाव्य सात काण्ड में विभाजित है. इन सांत काण्ड के नाम इस प्रकार हैं-
बाल काण्ड।
अयोध्या काण्ड।
अरण्य काण्ड।
किष्किंधा काण्ड।
सुंदर काण्ड।
लंका काण्ड (युद्ध काण्ड।
उत्तर काण्ड।

आज के आर्टिकल में हम बात कर रहे हैं अयोध्या काण्ड के एक प्रसंग के बारे में. एकबार राजा जनक के राज्य मिथिला में बहुत दिनों तक वर्षा नहीं हुई. राज्य में घोर अकाल पड़ गया. इस भीषण आपदा से मुक्ति पाने का उपाय जानने के लिए मिथिला पति महाराजा जनक अपने राज्य के ऋषि-मुनियों से मिले जहां उन्होंने उनसे कहा कि राज्य की कृषि सूख रही है खेत खलिहान वीरान पड़े हैं, बहुत समय से वर्षा नहीं हुई है. इस समस्या का कोई उपाय बताएं.

इस पर ऋषि-मुनियों ने राजा जनक को खेत में हल चलाने की सलाह दी और यह भी कहा कि आपकी इस क्रिया से इंद्र देव आपसे प्रसन्न होंगे और आपकी इस परेशानी को अवश्य दूर कर देंगे.

रामायाण के अनुसार राजा जनक ने जिस दिन खेत में हल चलाया था उस दिन वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की नवमी थी. राजा जब हल चला रहे थे तब उनका हल खेत में गड़े एक कलश से टकराया जिसमें एक कन्या थी. राजा ने उन्हें अपनी पुत्री मानकर अपने पास रखा और लालन पालन किया.
सीता जी का नाम सीता कैसे पड़ा?

हल के निचले हिस्से (फल को) को सीत भी कहा जाता है इसलिए उनका नाम सीता रखा गया. राजा जनक की कोई संतान नहीं थी इसलिए इस कन्या को पाकर राजा धन्य हो गए. सदियों से उस कन्या को न केवल सीता के नाम से बल्कि सीता को जानकी और मिथिलेश कुमारी जैसे नामों से भी जाना जाता है. ये भारत सहित विश्व की सभी नारियों के लिए एक आदर्श हैं.