एक दिन राम दरबार में कई ऋषि-मुनियों के साथ महर्षि च्यवन पधारे। रामजी ने सबका बहुत आदर सत्कार किया और सेवा की आज्ञा मांगी तो महर्षि च्यवन ने बताया कि मधुपुर में लवणासुर नाम का राक्षस, ऋषि मुनियों के लिए काल बना हुआ है। आप उसके अत्याचारों से हमें मुक्ति दिलाएं. रामजी ने कहा :-
हम प्रतिज्ञा करते हैं कि हम उस संकट का समूल नाश कर देंगे। रघुवंशी शरणागत की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से भी संकोच नहीं करते। आप निश्चिंत रहिए ऋषिवर।
ऐसा होना चाहिये राजा, जो अपने राज्य के विद्वानों,साधु संतों का पूरा सम्मान सत्कार भी करे और उनकी सुरक्षा का भी पूरा उत्तर दायित्व निभाए। आज का शासक अपना ये उत्तरदायित्व भूलकर साधु-संतों पर गोलियां चलवा रहा है जो समाज के लिए बहुत घातक है।
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उस महाराक्षस से युद्ध करना अपने प्राणों का दांव लगाने जैसा था परंतु भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न तीनो भाई बिना एक पल सोचे, युद्ध पर जाने के लिए एकदम तैयार हो गए। युद्ध के लिए सिर्फ एक को ही जाना था पर तीनों यही कहते रहे कि मुझे ही जाने दिया जाए।
परन्तु शत्रुघ्न के अनुरोध और तर्कों से रामजी ने लवणासुर के वध का उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा। ये है राम राज्य — जहां कर्तव्य पूर्ति के लिए हर अधिकारी अपना तन मन जीवन सब कुछ दांव पर लगाने को हर पल तैयार खड़ा है।
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Jai Shriram 🙏
Gepostet von Arun Govil am Montag, 8. Juni 2020
राम जी अयोध्या में ही मथुरा के भावी राजा के रूप में शत्रुघ्न का राज्याभिषेक करते हैं और प्रस्थान से पहले उन्हें अपना अमोघ बाण देते हुए कहते हैं- शत्रुघ्न! शास्त्र कहता है वीर को उतनी ही शक्ति का प्रयोग करना चाहिए जितनी परम आवश्यक हो।
आत्म संयम (self-control) की सीख और आशीर्वाद देकर राम जी शत्रुघ्न को मथुरा के लिए विदा करते हैं।
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विधि का कमाल का विधान देखिए – रास्ते में शत्रुघ्न, महर्षि वाल्मीकि मुनि के आश्रम पर रात्रि विश्राम के लिए रुकते हैं और उसी रात्रि सीता जी दो पुत्रों को जन्म देती हैं। सूर्यवंश के इन दो दीपकों के जन्म के समय अपने आप उस समय पूरे वन में सूर्यवंश की पताकाएं लहरा रही हैं।
शत्रुघ्न द्वारा ही उनका जातक संस्कार होता है और आशीर्वाद स्वरूप सूर्यवंश के चिन्हों से अंकित हार, शत्रुघ्न द्वारा सूर्यवंश के इन दोनों नवजातों को मिलता है।
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लवणासुर के प्रसंग में वो एक बड़ी महत्वपूर्ण बात अपनी पत्नी से कहता है:-‘ये ऋषि मुनि ही आर्यों की वास्तविक मूल शक्ति हैं। ये बड़े-बड़े यज्ञ और वैदिक अनुष्ठानों के द्वारा, बड़े वैज्ञानिक अनुसंधान करके ऐसी शक्तियां प्राप्त करते हैं जिनसे हमारी मायावी शक्तियों को परास्त कर सकें।’
‘हमारे मामा महाराज रावण का कहना था यदि ऋषि-मुनियों का समूल नाश कर दिया जाए तो पृथ्वी पर केवल राक्षसों का राज रह जाएगा।’ यह गंभीरता से समझने और याद रखने वाली बात है। वैदिक परंपराएं जब जब कमजोर हुई हैं तब तब धरती पर आसुरी शक्तियों का राज बढ़ा है।
विश्व की वर्तमान परिस्थितियां इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। कल्याणकारी वैदिक परंपरा का विरोध विनाशकारी राक्षसी प्रवृति के लोग आज भी उसी तरह करते आ रहे हैं।