भगवान विष्णु के पैर के स्पर्श से बने नारायण सरोवर में डुबकी लगाने से होती है मोक्ष प्राप्ति

गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तालुका में हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है नारायण सरोवर। यह सरोवर हिन्दुओं की पांच पवित्र झीलों में से एक हैं। यहाँ पर सिंधु नदी का सागर से संगम होता है। नारायण सरोवर का संबंध भगवान विष्णु से है। नारायण सरोवर के तट पर भगवान आदिनारायण का प्राचीन और भव्य मंदिर है। साथ ही त्रिकमरायजी, लक्ष्मीनारायणजी, गोवर्धननाथजी, द्वारकानाथजी, रणछोड़रायजी और लक्ष्मीजी के मंदिर भी यहाँ बने हुए हैं। मान्यता है कि इन मंदिरों का निर्माण महाराव देसलजी की पत्नी ने करवाया था। यहाँ से चार किलोमीटर दूर प्रसिद्ध कोटेश्वर शिव मंदिर है।

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श्रीमद् भागवत में भी पवित्र नारायण सरोवर का वर्णन किया गया है। श्रीमद् भागवत के अनुसार इस स्थान पर राजा बर्हिष के पुत्र दसपचेतस् ने पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या की थी। दसपचेतस् भगवान रूद्र से रुद्रगान सुनकर लगभग 10 हजार सालों तक यहां पर रुद्र जाप करते रहे। उनकी इस तपस्या से भगवान प्रसन्न हुए और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, जिनका नाम दक्ष प्रजापति रखा गया।

नारायण सरोवर को लेकर स्थानीय लोगों की मान्यता है कि पौराणिक युग में एक बार भयंकर सूखा पड़ा था। इस संकट से निकालने के लिए ऋषियों ने भगवान विष्णु की खूब तपस्या की थी। ऋषियों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु, नारायण रूप में प्रकट हुए और अपनी पैर की अंगुली से भूमि का स्पर्श किया। भगवान विष्णु के स्पर्श से वहां एक सरोवर बन गया, जिसे नारायण सरोवर के नाम से जाना जाता है।

नारायण सरोवर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु नारायण सरोवर डुबकी लगाने के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु ने स्नान किया था। इसलिए इस सरोवर में डुबकी लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ तीन दिन का मेला भी लगता है। इस मेले में उत्तर भारत के सभी सम्प्रदायों के लिए साधू-संत और श्रद्धालु आते हैं। नारायण सरोवर में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी करते हैं। मान्यता है कि प्राचीन समय में अनेक संत-महात्मा इस स्थान पर आए थे। आदि गुरु शंकराचार्य भी इस स्थान पर आए थे।