51 शक्तिपीठों में शामिल माता का एक महान मंदिर, जिसके सामने मुग़ल और अंग्रेजों ने टेक दिए थे घुटने

सती माता के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वालादेवी का मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में स्थित है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ सती माता की जीभ गिरी थी. इसलिए इसका नाम ज्वालादेवी मंदिर है. इस मंदिर में माता के मूर्ति रूप की नहीं बल्कि ज्वाला रूप की पूजा की जाती है. और ये ज्वाला यहाँ हज़ारों सालों से प्रज्ज्वलित है. इस ज्वाला को प्राकृतिक नहीं बल्कि चमत्कारिक माना जाता है.

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हजारों वर्षों से यहां स्थित देवी के मुख से अग्नि निकल रही है. कहा जाता है कि इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी. इस मंदिर में अलग अग्नि की अलग-अलग 9 लपटें हैं, जो अलग-अलग देवियों को समर्पित हैं. कहते हैं कि सतयुग में महाकाली के परम भक्त राजा भूमिचंद के स्वप्न में माँ ने दर्शन दिए थे. और उसी से प्रेरित होकर यह भव्य मंदिर बनवाया था. और बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया. जो भक्त सच्चे मन से इस मंदिर में माँ ज्वाला देवी दर्शन के लिए आता है, मान्यताओं के अनुसार उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

सनातन धर्म में अग्नि को बहुत पवित्र माना जाता है. इस मंदिर में ज्वाला माता जी की ज्योत सदियों से जल रही है. कुछ भू वैज्ञानिको का मानना है की ज्वाला माता के मंदिर के नीचे तेल और गैस का भण्डार हो सकता है. और इसके बाद भारतीय वैज्ञानिकों का एक बड़ा समूह और तेल एवं प्राकृतिक गैस पर रिसर्च करने वाले बड़े संगठन ONGC की तरफ से वहां पर इस ज्वाला के रहस्य को जानने की कोशिश की गई, पर वो नाकाम रही, और इसे बंद कर दिया गया. देश की आज़ादी से पहले अंग्रेजों ने भी इस रहस्य को जानने की बहुत कोशिश की, और सन 1853 में यहाँ का सर्वेक्षण करने के बाद अपनी पड़ताल शुरू की, जिसमें लम्बा वक़्त गुजर गया, पर उन्हें वहां कुछ भी नहीं मिला. 1940 मे जब आज़ादी के लिए आन्दोलन ने जोर पकड़ा तो विरोध के चलते वहां खोज आगे नहीं बढ़ पाई. देश आज़ाद होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने रोमानिया, इटली, फ़्रांस के वैज्ञानिको की मदद से इस इलाके में खुदाई और जांच का काम शुरू कराया. ONGC ने यहाँ 1957 मैं पहली बार खुदाई का काम शुरू किया था, लेकिन हर कोशिश नाकाम हुई.

यहाँ तक कि, मुग़ल बादशाह अकबर ने इस जलती हुई ज्वाला को बुझाने के लिए नहर तक खुदवा दी थी, लेकिन ज्योति नहीं बुझी. और अकबर इस रहस्य के आगे हार गया. और उसने घुटने टेक दिए. उसके बाद और भी कुछ मुस्लिम शासकों ने ज्वाला को बुझाने के प्रयास किए थे, लेकिन सब विफल रहे.

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हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा हुए इस मंदिर में अनंतकाल से ज्वाल निकल रही है. इसके अलावा यहां पर एक और चमत्कार देखने को मिलता है. मंदिर परिसर के पास ही एक जगह है ‘गोरख डिब्बी’ जो कि एक जल कुंड है. इस कुंड में गर्म खौलता हुआ पानी है, जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है.

किसी को यह ज्ञात नहीं है कि ये ज्वालाएं कहां से प्रकट हो रही हैं? इनका रंग परिवर्तन कैसे हो रहा है? आज भी लोगों को यह पता नहीं चल पाया है यह प्रज्वलित कैसे होती है और यह कब तक जलती रहेंगी? पर ये भक्ति है, आस्था है, विश्वास है, सनातन धर्म की महान शक्ति और बड़ी पहचान है.