यही है वो स्थान, जहाँ माँ चामुण्डा ने किया था महिषासुर का अंत

धार्मिक आस्थाओं का देश भारत वर्ष जहाँ कदम कदम पर देवी देवताओं का वास है. छोटे छोटे गाँव से लेकर बड़े बड़े महानगरों तक हर जगह मंदिरों में घंटियों की ध्वनि सुनाई देती है. ऐसा लगता है, यहाँ वाकई कण कण में ईश्वर रहते हैं. जैसा कि सब जानते हैं हमारे देश में पहाड़ों के प्रति भी गहरी आस्था है। इनमें से कई पहाड़ियां या पर्वत देवियों के नाम हैं, जिनके शिखर पर देवी के विभिन्न स्वरूपों की मूर्तियां विराजित हैं और उनके भव्य मंदिर के बने हुए हैं। शक्ति की प्रतीक मां दुर्गा के ही एक अवतार चामुंडा के नाम पर कर्नाटक के मैसूर में एक पहाड़ी है, जिसे चामुंडा पहाड़ी कहा जाता है।

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मैसूर की चामुंडा पहाड़ी देवी भक्तों की आस्था का एक बड़ा केंद्र है। यह पहाड़ी मैसूर से लगभग 13 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है, जो देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर देवी दुर्गा की महिषासुर नाम के महादानव पर विजय का प्रतीक है। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित देवी की मूर्ति शुद्ध सोने की बनी हुई है। इस मंदिर का निर्माण बारहवीं शताब्दी में किया गया था। मंदिर सात मंजिला है, जिसकी ऊंचाई 40 मीटर है। मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा मंदिर भी है, जो 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का बहुत सुंदर नजारा दिखाई देता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा बनी हुई है, जो कि मां चामुंडा की महिषासुर पर विजय की प्रतीक है।

वास्तव में चामुंडेश्वरी वाडयार राजवंश की कुल देवी हैं। तब इस राजवंश का छोटे से मैसूर राज्य पर शासन था। यह शासन 1399 से 1947 तक कायम रहा। यहां पर हर दशहरे पर एक बड़ी शोभायात्रा निकालने की परंपरा है। शोभायात्रा में देवी की मूर्ति सोने के हौदे में विराजमान कराई जाती है। यह शोभायात्रा मैसूर के प्रसिद्ध दशहरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत के गणतंत्र बन जाने के बाद राजतंत्र का खात्मा कर दिया गया और महाराज महज कहने के लिए राजा रह गए। मैसूर के नजदीक चामुंडा पहाड़ी पर द्रविडियन शैली में देवी का एक मंदिर बना है। परंपरा के अनुसार इस मंदिर में कनार्टक के मुख्यमंत्री एक विशेष पूजा करते हैं और इस पूजा के साथ ही 10 दिन के दशहरा त्यौहार की शुरूआत होती है।

चामुंडा पहाड़ी समुद्र तल से करीब 1065 मीटर की ऊंचाई पर है। ऐसा भी मानते हैं कि देवी चामुंडेश्वरी देवी पार्वती का अवतार हैं। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था और 1827 में मैसूर के राजा ने इसकी मरम्मत करवाई। चामुंडा पहाड़ी की एक और खासियत यह है कि यहां पांच मीटर ऊंची एक नंदी की प्रतिमा है, जिसे 1659 में एक काले ग्रेनाइट से तराश कर बनवाया गया था। पहाड़ी के ऊपर मां चामुंडेश्वरी के साथ ही हनुमानजी को समर्पित एक और छोटा मंदिर है।

मैसूर शहर के प्रमुख स्थल चामुंडा पहाड़ी का शहर की विरासत के साथ गहरा संबंध है। इसे बोलचाल की भाषा में चामुंडी बेट्टा (कन्नड़ में पहाड़ी) कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह पहाड़ी राक्षस महिषासुर का निवास स्थान था, जिसके नाम पर इस स्थान को महिषासुर या महिषुर कहा जाता है। बाद में यह नाम कन्नड़ में मैसूरु और अंग्रेजी में मैसूर में बदल गया। देवी चामुंडेश्वरी के अवतार या रूप में देवी दुर्गा ने इस राक्षस पर विजय प्राप्त की, और इस तरह क्षेत्र के लोगों की सर्वोच्च देवी बन गईं। कुछ लोग कहते हैं कि पहाड़ी का आकार पराजित महिषासुर की तरह है। मैसूर का सबसे पुराना मंदिर होने के साथ ही पहाड़ी पर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाई गई हैं। पहाड़ी की आधी ऊंचाई पर विशाल नंदी बना हुआ है। यह भारत की तीसरी सबसे बड़ी नंदी की मूर्ति है।

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पहाड़ी पर जाने के लिए पक्की सड़क भी बनाई गई है, लेकिन पैदल चलना बहुत अच्छा लगता है। पहाड़ की हवा सैलानियों को तरोताजा बनाए रखती है। यहां की परंपरा के मुताबिक पहाड़ी पर जाने वाली प्रत्येक सीढ़ी पर विवाहित महिलाएं सिंदूर और हल्दी लगाती हैं। इसके माध्यम से सुखद दांपत्य जीवन और अपने पति के लंबे जीवन के लिए देवी से प्रार्थना की जाती है। इस तरह चामुंडा पहाड़ी जन-जन की आस्था का केंद्र है।