मेघनाथ युद्ध में आकर लक्ष्मण को युद्ध के लिए ललकारता है। स्वभाव के अनुसार लक्ष्मण जी आवेश में आकर राम जी से मेघनाथ के साथ युद्ध करने की आज्ञा मांगते हैं। राम जी कहते हैं-आवेश और उत्साह में अंतर होता है लक्ष्मण। सोच समझकर धीर गंभीर भाव से युद्ध करना। जाओ वीरवर! विजयी भव
****
लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध अब तक का सबसे भीषण युद्ध होता है। मेघनाद को अपनी आसुरी मायावी शक्तियों का अभिमान है तो लखनलाल को प्रभु श्रीराम के वरदान का अभिमान है।
दोनों में से कोई ना हार मानने को तैयार न पीछे हटने को तैयार। धरती तो क्या आकाश पाताल तीनो लोक स्तब्ध खड़े इस महायुद्ध को देख रहे हैं। मेघनाद रूपी अधर्म का झंझावात लक्ष्मण रूपी धर्म के महापर्वत से टकरा रहा है। मेघनाथ को जब यह आभास हो गया कि सामान्य युद्ध में दिव्य अस्त्र शस्त्रों से लक्ष्मण को हराना संभव नहीं है तो वह मायावी युद्ध पर उतर आया।
*****
Jai Shriram 🙏#goodmorning
Gepostet von Arun Govil am Samstag, 6. Juni 2020
विभीषण को जब मेघनाथ के छल की विभीषिका का आभास हुआ तो उन्होंने राम जी से लक्ष्मण का साथ देने का अनुरोध किया क्योंकि संध्या काल में मेघनाथ की शक्तियां 4 गुनी हो जाती थी।
राम जी लक्ष्मण के पास आते हैं तब तक मेघनाद अपने रथ के सहित आकाश में गायब हो जाता है और छल बल करके नागपाश में राम लक्ष्मण दोनों को बांध देता है।
****
भ्रष्टाचारी पापाचारी आतंकवादी जब सामने से युद्ध करके सत्य का सामना नहीं कर पाते तो इसी तरह वे धोखा छल और छुपकर वार करने की नीति अपनाते हैं। पापियों अधर्मियों की यह अनीति तब भी थी और आज भी यही हो रहा है।
******
राम लक्ष्मण के नागपाश में बँध जाने के बाद राम जी की सारी सेना निराश हो जाती है क्योंकि इसका कोई तोड़ किसी की समझ में नहीं आता। हनुमान जी गरुड़ जी को लाकर राम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त कराते हैं। ‘वास्तव में यह लीला थी ही इसीलिए।’ भगवान श्रीराम को अपने सेवक, अपने वाहन को भी धर्म के इस महायुद्ध में एक भूमिका प्रदान करनी थी अन्यथा राम अथवा लक्ष्मण को किसी बंधन में बांधने की सामर्थ्य पूरे ब्रह्मांड में किसी में नहीं है।
******
बंधन से मुक्त होते ही जब राम जी को सारा वृत्तांत ज्ञात होता है तो वे पक्षीराज गरुड़ का आभार व्यक्त करते हुए कहते हैं-नागपाश से हमारा उद्धार करने वाले पक्षीराज! हमारा आपका प्रत्यक्ष कोई संबंध नहीं फिर भी आपने निस्वार्थ भाव से हमारी सहायता की है, हम आपके सदैव ऋणी रहेंगे।
प्रभु श्रीराम तो नर लीला में हैं परंतु गरुड़ जी ने अपने शाश्वत स्वामी राम रूप में श्रीहरि नारायण की प्रदक्षिणा करके उन्हें प्रणाम किया और अपने लोक को चले गए।
*****
रामजी की अनुमति लेकर सारी वानर सेना शंखनाद करती है, जय जयकार करती है ताकि व्यथित सीता माता को यह संदेश पहुंच जाए कि प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी नागपाश से मुक्त हो चुके हैं।
****
शंखनाद और जयघोष रावण और मेघनाथ को भी अचंभित करते हैं व्यथित करते हैं। राम जी की सेना में जय जय कार और रावण के परिवार में हाहाकार फिर प्रारंभ हो जाता है। अधर्मी पापी भ्रष्टाचारी कितना भी बलवान क्यों ना हो, धर्म और सत्य को परेशान भले कर दे परंतु परास्त नहीं कर सकता।