नारद जी ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और ब्रह्मा जी के कंठ से इनकी उत्पत्ति मानी जाती है। नारद जी स्वयं एक परम वैष्णव हैं। यह पुराण नारद जी द्वारा स्वयं कहा गया है इसलिए इसका नाम नारद पुराण या नारदीय पुराण है। नारद पुराण एक विशुद्ध वैष्णव पुराण है। 18 पुराणों में से एक नारद पुराण इसलिए भी विशेष है कि इसमें सभी अठारह पुराणों की तालिका दी हुई है जिनमें प्रत्येक पुराण के भाग, अध्याय और श्लोकों की संख्या भी वर्णित है।
नारद पुराण का संपूर्ण कथानक मुख्य रूप से शौनक आदि विषयों के पांच प्रश्न-
1 त्रिलोकीनाथ श्री हरि भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के उपाय क्या है?
2 संसार चक्र से मानव की मुक्ति के उपाय क्या है?
3 ईश्वर की भक्ति का स्वरूप और प्रभाव क्या है तथा ईश्वर भक्तों के स्वभाव क्या है।
4 अतिथि का स्वागत कैसे करें
5 चारों आश्रम तथा वर्ण व्यवस्था का विस्तृत वर्णन।
और सूत जी के उत्तरों का संकलन है।
नारद पुराण में सदाचार की महिमा, पंच महापातकों का वर्णन, गायत्री मंत्र जाप का स्वरूप और उसकी महिमा, वेदों के समस्त अंग- शिक्षा कल्प व्याकरण ज्योतिष और छंद का वर्णन है। ईश्वर की उपासना का महत्व और भगवान विष्णु की भक्ति के स्वरूप का वर्णन किया गया है। मान्यता के अनुसार इस पुराण में 25000 श्लोक हैं परंतु वर्तमान में मात्र 22000 श्लोक ही उपलब्ध हैं। कुछ विद्वान तो 18000 श्लोकों की ही उपलब्धि मानते हैं।
नारद पुराण भी पूर्व और उत्तर नामक दो भागों में विभक्त है-
पूर्व भाग
इसके पूर्व भाग में 125 अध्याय हैं जिनमें भगवान विष्णु के दाहिने भाग से ब्रह्मा जी और बाएं भाग से शिवजी की उत्पत्ति का वर्णन है। ज्ञान के अनेक स्तरों का वर्णन है। ईश्वर में आस्था और श्रद्धा बढ़ाने वाली बहुत सारी ऐतिहासिक कथाओं का वर्णन है, अनेकानेक गूढ़ धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन है, धर्म के लक्षण और स्वरूप का विस्तृत वर्णन है
भक्ति के महत्व और भक्तों के प्रकारों के साथ-साथ भक्ति का महत्व स्थापित करने वाली कई अद्भुत कथाओं का वर्णन है। एकादशी व्रत का स्वरूप और उसकी महिमा, गंगा जी की उत्पत्ति ब्रह्माजी के मानस पुत्रों- सनक, सनंदन, सनातन और संत कुमार आदि का नारद से संवाद वर्णित है। 18 पुराणों की सांगोपांग सूची नारद पुराण के पूर्व भाग में वर्णित है
उत्तर भाग
नारद पुराण के उत्तर भाग में 82 अध्याय हैं। अतिथि देवो भव की व्याख्या और अतिथि की उपासना का वर्णन, ब्रम्हचर्य का महत्व और ब्राह्मणों द्वारा ब्रम्हचर्य पालन की अनिवार्यता का वर्णन।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के कर्तव्यों और अधिकारों का वर्णन, दंड विधान, विवाह आदि कर्म विधान में चारों वर्णों के अधिकारों और कर्तव्यों का वर्णन , गंगा जी के पृथ्वी पर आने की पूरी कथा, गंगा जी के तट पर बसे हरिद्वार प्रयाग काशी सहित सभी तीर्थों का विस्तार से वर्णन, सूर्यवंशी राजा बाबू के पुत्र सगर का वर्णन, सगर द्वारा शक और यवन जातियों से युद्ध का वर्णन, इसी वंश में भगीरथ हुए थे जो गंगा जी को पृथ्वी पर ले आए और जिनके नाम पर गंगा जी का नाम भागीरथी भी है।
विष्णु पूजा के साथ-साथ श्री राम की पूजा का भी वर्णन है। हनुमान की उपासना की पद्धति और महत्व, कृष्ण की उपासना की विधियों का वर्णन भी नारद पुराण में है। काली और शिव की पूजा के कुछ मंत्री भी इस पुराण में उल्लिखित हैं। गौ महिमा के वर्णन के साथ-साथ गौ हत्या और देव निंदा को घोर पाप बताया गया है। गणित के भिन्न-भिन्न सूत्रों और नियमों का विस्तार से वर्णन नारद पुराण में मिलता है। पुराण ने पुराण के बारे में स्वयं कहा है कि पापियों के सामने नारद पुराण का पाठ नहीं करना चाहिए।
ॐ तत्सत