भगवान श्रीराम के वनवास के समय का दूसरा सबसे अहम हिस्सा आता है पंचवटी में शूर्पणखा की नाक काटने के प्रसंग का। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के दौरान नासिक के पास मौजूद तपोवन में ठहरे थे। यहीं लक्ष्मणजी ने शूर्पणखा की नाक काटी थी, इसलिए इस जगह का नाम नासिक पड़ा। भगवान श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मणजी वनवास काल में यहां आए थे, इस बात के कई सबूत यहां मौजूद हैं। 150 ईसा पूर्व के प्रसिद्ध दार्शनिक प्लोतेमी ने भी अपने लेखों में नासिक का उल्लेख किया है। नासिक वर्तमान में महाराष्ट्र के सबसे तेजी से बढ़ते शहरों में से है।
नासिक को नासहिक के नाम से भी जाना जाता था। मौजूदा स्थिति में नासिक महाराष्ट्र के उत्तर-पश्चिम में नापा घाटी के पश्चिमी घाट पर स्थित है। यह नगर कभी सत्वहना राजवंश की राजधानी था। सोलहवीं सदी के दौरान आक्रामकों ने इसका नाम बदल दिया था। उसके बाद यह पेशवाओं के पास था, जो 19वीं सदी के अंत में अंग्रेजों से हार गए थे। नासिक को अंगूर की खेती के कारण भी पहचाना जाता है।
नासिक का नाम इस रूप में भी जाना जाता है कि यहां बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर विराजमान हैं। इस मंदिर में भगवान श्रीराम का आगमन भी हुआ था। यह भारत के सबसे ज्यादा पवित्र माने गए स्थलों में से एक है।
भगवान श्रीराम के यहां आने के एक बड़ा गवाह है रामकुंड। यह नासिक क्षेत्र में मुख्य आकर्षण में से एक है। इसका पक्का निर्माण 300 से अधिक साल पहले, 1696 में चितारो खातरकर द्वारा किया गया। यह पवित्र कुंड 12 से 27 मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। भगवान श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मणजी ने वनवास के दौरान इस कुंड में स्नान किया था। यहीं पर सीता गुफा भी है, जिसे लेकर मान्यता है कि माता सीता को स्वर्ण मृग (सोने का हिरण) यहीं दिखा था तथा यहीं से साधु का वेश रखकर लंका के राजा रावण ने माता सीता का हरण किया था। मंदिर के अंदर एक पुराना शिवलिंग भी मौजूद है, जिसके बारे में कहा जाता है कि सीताजी यहां शिवजी की पूजा करती थीं। इसके साथ ही तपोवन भी एक महत्वपूर्ण स्थान है, जहां कपिला नदी और गोदावरी नदी का संगम है। यहीं पर माता सीता की रसोई और उनके नहाने की जगह आज भी मौजूद है।
नासिक का कालाराम मंदिर अपनी बनावट को लेकर काफी प्रसिद्ध है। इसकी निर्माण शैली त्र्यंबकेश्वर मंदिर जैसी है। इसका निर्माण काले पत्थरों से किया गया है। मंदिर 70 फुट लंबा है और इसका शिखर तांबे का बना है, जिस पर सोना चढ़ाया गया है। इस मंदिर में भगवान श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मणजी की मूर्तियां विराजित हैं।
नासिक का संबंध महाभारत काल से भी है, जहां मौजूद पांडवलेनी गुफाएं वास्तु कला का उम्दा उदाहरण है। त्रिवाष्मी हिल्स के पठार पर बसी पांडवलेनी गुफाएं सदियों पुरानी हैं। इसी तरह दूधसागर झरना महाराष्ट्र में सर्वाधिक आकर्षक झरनों में से एक है। नासिक के पास सोमेश्वर में स्थित यह झरना देखने भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं। कुल मिलाकर नासिक वह क्षेत्र हैं, जहां जगह-जगह भगवान श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मणजी के आने की निशानियां मौजूद हैं, जहां के दर्शन और पूजन-अर्चन कर लोग खुद को धन्य मानते हैं।