लालच के लिए इस हद तक भी जा सकता है कोई….

लालच को मनुष्य का शत्रु माना जाता है। लालच के कारण ही मनुष्य में अवगुणों का जन्म होता है। लालच में आकर मनुष्य बुरे कर्म करने से भी परहेज नहीं करता है। इसलिए हमें लालच नहीं करना चाहिए। क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि हमें अपने बुरे कर्मों की सजा अवश्य मिलती है। भगवान गौतम बुद्ध ने भी अपनी जातक कथा के माध्यम से यह संदेश दिया है।

जातक कथा है कि किसी समय एक गांव में लालची और दुष्ट व्यक्ति रहता था। वह अपने फायदे के लिए किसी के भी साथ छल कर सकता था। एक दिन लालची व्यक्ति जंगल में मार्ग भटक गया और एक जगह बैठकर विलाप करने लगा। इस दौरान वहां से एक चमकीले दांत वाला हाथी गुजर रहा था। लालची व्यक्ति को विलाप करते देख हाथी को उस पर दया आ गई। हाथी उसके पास पहुंचा और उसकी मदद करने के लिए उसे अपनी पीठ पर बैठाकर अपने निवास स्थान पर ले आया। हाथी ने उसे स्वादिष्ट फल खिलाए और फिर एक बस्ती में छोड़ दिया।

हालांकि हाथी के चमकीले दांत देखकर लालची व्यक्ति के मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि हाथी के चमकीले दांत की बाजार में अच्छी कीमत मिल जाएगी। यह सोचकर लालची व्यक्ति अगले दिन औजार लेकर हाथी के निवास स्थान पहुंच गया। जब हाथी ने उससे वहां आने का कारण पूछा तो लालची व्यक्ति अपनी निर्धनता की कहानी हाथी को सुनाने लगा और हाथी से कहा कि अगर वह अपना एक दांत दे देगा तो उसकी निर्धनता दूर हो जाएगी। हाथी भी बड़ा दानवीर था। उसने लालची व्यक्ति को अपना दांत काटकर ले जाने की इजाजत दे दी। इसके बाद लालची व्यक्ति ने हाथी का दांत काटकर उसे बाजार में अच्छी कीमत पर बेच दिया।

हालांकि लालची व्यक्ति इससे भी संतुष्ट नहीं हुआ। वह कुछ दिनों बाद वापस हाथी के पास पहुंचा और हाथी का दूसरा दांत भी काटकर ले आया। इससे उसके मन में और लालच आ गया। वह फिर से हाथी के पास पहुंचा और हाथी से शेष बचे सभी दांत देने के लिए कहा। हाथी ने इसके लिए भी अपनी सहमती दे दी। इसके बाद लालची व्यक्ति ने हाथी के मसूड़ों को काटकर सभी दांत निकाल लिए। इससे हाथी की वहीं मृत्यु हो गई। हाथी के शेष सभी दांत लेकर लालची व्यक्ति जब जंगल से बाहर जा रहा था, तभी वहां अचानक धरती फट गई और वह आदमी काल के गाल में समा गया।