घमंड तो उस साँप की तरह है जो अगर आप के दिमाग रूपी घर मे घुस जाए तो उसे तुरंत बाहर का रास्ता दिखाएं या मार दें. अन्यथा, ये साँप आप के जीवन में उथल पुथल कर देगा. इस सांप की वजह से आप रिश्तों से दूर हो जाएंगे, आपके दोस्त आप से दूर हो जाएंगे, बने हुए काम बिगड़ने लगेंगे. अर्थात आप शिखर से फर्श तक आ जाएंगे. फर्श से शिखर पर पहुँचने के लिए आपको एक पेड़ की तरह होना पड़ेगा, जो फल लगने के बाद भी झुका रहता है. जीवन में कभी भी घमंड या अहंकार को मित्र बनाने से पहले रावण के बारे में सोचिएगा. याद कीजिएगा कि किस तरह इतने बड़े विद्वान, ज्ञानी पंडित होने के बाद भी रावण को अहंकार की वजह से सबकुछ गवांना पड़ा.
जिस इंसान के अंदर घमंड होता है उसे किसी दुश्मन की ज़रूरत नहीं. अहंकार अपना किरदार निभाने में बहुत परिपक्व हैं. जिसने इन्हें नियंत्रित लिया, समझो सारा जहां उसके संग हो गया.
आज आपको एक गुरु शिष्य की कहानी बताते हैं जिसे पढ़कर आप समझ पाएंगे कि घमंड या अंहकार क्यों नहीं करना चाहिए.
एक लोक कथा के मुताबिक, एक गुरु अपने शिष्यों को खिलौने बनाना सिखाया करता था, और खुद खिलौने बेच कर जीवन यापन करते थे. गुरु के सिखाए हुए शिष्यों में से एक शिष्य, गुरु से ज्यादा अच्छा खिलौने बनाने लगा. इस वजह से इस शिष्य के खिलौने ज्यादा बिकते और कमाई भी ज्यादा होती.
शिष्य की तरक्की को देख गुरु को अच्छा तो लगता पर रोज शिष्य को कहते “तुम्हारे खिलौनों में सफाई की ज़रूरत है.” इस तरह की बातों को रोज सुनकर शिष्य के मन में विचार आया कि गुरुजी को जलन होने लगी है. इसलिए वे मुझे इस तरह की सलाह बार-बार देते हैं. फिर एक दिन शिष्य ने गुस्से में आकर गुरु जी से पूछा कि गुरु जी मैं तो आपसे अच्छे खिलौने बनाता हूं और आपसे ज्यादा पैसे कमाता हूं, फिर भी आप मुझे ही सलाह देते रहते हैं. देखा जाए तो आपको अपने काम में सुधार करने की ज़रूरत है.
यह बात सुनकर गुरु की समझ में आ गया कि शिष्य में घमंड आ गया है. और फिर शिष्य से कहने लगे कि “बेटा जब मैं तुम्हारी उम्र का था, मेरे खिलौने भी मेरे गुरु के खिलौनों से अधिक बिका करते थे. वे भी मुझे यही कहते थे कि तुम्हारे खिलौने में सफाई की जरूरत है. एक दिन गुस्से में आकर मैने अपने गुरु से यही प्रश्न पूछा था. उस दिन के बाद से उन्होंने मुझे सलाह देना बंद कर दिया और इस वजह से मेरी कला में और निखार नहीं आ सका. और मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे साथ भी वही हो.” इन बातों को सुनने के बाद शिष्य ने गुरु से क्षमा मांगी और अपनी कला को निखारने में लग गया.
कथा की सीख
जिसने जो भी कला आपको सिखाई है यदि उससे बेहतर काम आप करते हैं तो घमंड न करें, वरना कला में और निखार नहीं आएगा. और फिर पछतावा तब होगा जब कोई और आप ही के क्षेत्र में आपसे आगे निकल जाएगा.